SC का ऐतिहासिक फैसला, राइट टु प्रॉइवेसी है मौलिक अधिकार

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आरयू वेब टीम। 

सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार पर आज एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। राइट टु प्राइवसी को मौलिक अधिकारों का हिस्‍सा करार देते हुए नौ जजों की संविधान पीठ ने 1954 और 1962 में दिए गए फैसलों को पलटा। कोर्ट ने कहा कि राइट टु प्राइवेसी मौलिक अधिकारों के अंतर्गत प्रदत्त जीवन के अधिकार का ही हिस्सा है। राइट टू प्राइवेसी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आती है। अब लोगों की निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब कोई अपनी निजी जानकारी या फिर आधार के लिए बायोमैट्रिक जानकारी देने से इनकार कर सकता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है। इसकी सुनवाई पांच जजों की अलग बेंच करेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया यह तर्क

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में जजों ने कहा कि अगर मैं अपनी पत्नी के साथ बेडरूम में हूं तो यह ‘प्राइवेसी’ का हिस्सा है। ऐसे में पुलिस मेरे बैडरूम में नहीं घुस सकती। हालांकि अगर मैं बच्चों को स्कूल भेजता हूं तो ये ‘प्राइवेसी’ के तहत नहीं आता है, क्योंकि यह ‘राइट टु एजूकेशन’ का मामला है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि आप बैंक को अपनी जानकारी देते हैं। मेडिकल इंशोयरेंस और लोन के लिए अपना डाटा देते हैं। यह सब कानून द्वारा संचालित होता है। यहां बात अधिकार की नहीं है। आज डिजिटल जमाने में डाटा प्रोटेक्शन बड़ा मुद्दा है। सरकार को डाटा प्रोटेक्शन के लिए कानून लाने का अधिकार है। सरकार द्वारा गोपनीयता भंग करना एक बात है, लेकिन उदाहरण के तौर पर टैक्सी एग्रीगेटर द्वारा आपका दिया डाटा आपके ही खिलाफ इस्तेमाल कर ले प्राइसिंग आदि में वो उतना ही खतरनाक है।

यह सुनिश्चित हो कि डाटा सुरक्षित रहे

कोर्ट ने कहा, हम जानते हैं कि सरकार कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार का डाटा जमा कर रहा है, लेकिन यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि डाटा सुरक्षित रहे। क्या कोर्ट प्राइवेसी की व्याख्या कर सकता है? आप यही कैटलॉग नहीं बना सकते कि किन तत्वों से मिलकर प्राइवेसी बनती है। प्राइवेसी का आकार इतना बड़ा है कि ये हर मुद्दे में शामिल हैं। अगर हम प्राइवेसी को सूचीबद्ध करने का प्रयास करेंगे तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे।

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वहीं इस मामले में वकील और इस मामले के याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने कोर्ट से बाहर मीडिया को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है और कहा है कि ये अनुच्छेद 21 के तहत आता है। आधार कार्ड को लेकर कोर्ट ने कोई फैसला नहीं लिया है। आधार कार्ड के संबंध में मामला पांच जजों की आधार बेंच के पास भेजा है। भूषण ने बताया कि अगर सरकार रेलवे, एयरलाइन रिजर्वेशन के लिए भी जानकारी मांगती है तो ऐसी स्थिति में नागरिक की निजता का अधिकार माना जाएगा।

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बताते चले कि सुप्रीम कोर्ट में कुल 21 याचिकाएं दायर की गई थीं। उच्‍चतम न्‍यायलय ने सात दिनों की सुनवाई के बाद दो अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था। उल्‍लेखनीय है कि 1950 में आठ जजों की बेंच और 1962 में छह जजों की बेंच ने कहा था कि ‘राइट टु प्राइवेसी’ मौलिक अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ में सीजेआई जेएस खेहर के अलावा जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस एआर बोबडे, जस्टिस आर के अग्रवाल, जस्टिस रोहिंग्टन नरीमन, जस्टिस अभय मनोगर स्प्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं।

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