कैद में भेदभाव पर सख्त हुए CJI चंद्रचूड़, कहा ‘जेल में जाति देखकर काम देना गलत’

सुप्रीम कोर्ट

आरयू वेब टीम। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को जेलों में कैदियों से जाति के आधार पर भेदभाव के मामले पर सुनवाई हुई। इस दौरान सीजेआइ डीवाई चंद्रचूड़ ने कई तल्ख टिप्पणी की। चीफ जस्टिस ने कहा, “संविधान समानता का अधिकार देता है, छुआछूत को बंद किया गया है, लेकिन ब्रिटिश काल में बने कानूनों का असर अब तक है। अंग्रेजों ने भारत की जाति व्यवस्था को अपने कानूनों में जगह दी। अंग्रेजों ने कई जनजातियों को आपराधिक घोषित किया। स्वतंत्र भारत में उन जातियों को उसी निगाह से देखना गलत है।”

सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे कहा, “हमें बताया गया कि जेलों में उच्च जातियों के कैदियों को खाना बनाने जैसे काम दिए जाते हैं। उन्हें इसके लिए सही माना जाता है। यह साफ तौर पर जाति आधारित भेदभाव है। कुछ जातियों को सफाई करने वाला मान कर उन्हें वैसा ही काम दिया जाता है, यह सब गलत है और ऐसा नहीं होना चाहिए।”

सीजेआइ ने आगे कहा कि डॉक्टर अंबेडकर ने इस बात पर जोर दिया था कि किसी वर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थिति उसके उत्पीड़न का आधार नहीं हो सकती। न तो अतीत में कुछ जनजातियों को अपराधी कह देना सही था, न आज उन्हें आदतन अपराधी की श्रेणी में डाल देना सही है। हम यह निर्देश दे रहे हैं कि हर राज्य तीन महीने में अपने जेल मैनुअल में संशोधन करे। केंद्र सरकार आदर्श जेल मैनुअल में इस बात को लिखे की जेल में जाति के आधार पर भेदभाव नहीं हो सकता।

‘जेल में कैदी की जाति का फॉर्म नहीं होना चाहिए’

सीजेआइ ने सुनवाई के दौरान कुछ जातियों को अपराधी मानने वाले सभी प्रावधान असंवैधानिक घोषित किए। सीजेआइ ने कहा कि जेल में कैदी की जाति दर्ज करने का कॉलम नहीं होना चाहिए। केंद्र सरकार तीन सप्ताह में इस फैसले की कॉपी सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजे। जाति के आधार पर सफाई का काम देना गलत है।

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बता दें, शीर्ष अदालत में दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि देश के कुछ राज्यों के जेल मैनुअल जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत 17 राज्यों से जेल के अंदर जातिगत भेदभाव और जेलों में कैदियों को जाति के आधार पर काम दिए जाने पर जवाब मांगा था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस साल जनवरी में कई राज्यों से जवाब मांगा था। हालांकि छह महीने बीतने के बाद भी केवल उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने ही अपना जवाब कोर्ट में दाखिल किया।

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