आरयू वेब टीम।
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक और याचिका दाखिल की गयी है। सात लोगों द्वारा दायर की गई इस याचिका में भूमि अधिग्रहण एक्ट को लेकर सवाल उठाया गया है। याचिका में मांग की गई है कि राज्य की जमीन केंद्र द्वारा अधिग्रहण कैसे किया जा सकता है।
साथ ही याचिका में कहा गया है कि राज्य सूची के विषयों की आड़ में केंद्र सरकार राज्य की भूमि अधिग्रहीत नहीं कर सकती। साथ ही मांग की गई है कि राज्य सरकार व केंद्र सरकार विवादित जमीन पर पूजा करने में दखलंदाजी न दें। याचिका दायर करने वालों ने अपने को रामभक्त और सनातन धर्म के अनुयायी बताया है।
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इससे पहले इस मामले में 29 जनवरी की सुनवाई टल गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के वर्ष 2010 के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर 29 जनवरी को प्रस्तावित सुनवाई टल गई है, क्योंकि पुनर्गठित पांच न्यायाधीशों की पीठ के एक न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे उस दिन उपलब्ध नहीं थे।
सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री की तरफ से जारी एक अधिसूचना में कहा गया था कि न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे की अनुपलब्धता के कारण प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ 29 जनवरी, 2019 को मामले की सुनवाई नहीं करेगी। पीठ के अन्य न्यायाधीशों में न्यामूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर हैं।
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शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री द्वारा वेबसाइट पर डाली गई अधिसूचना में कहा गया था, “संविधान पीठ मामले की सुनवाई 29 जनवरी को नहीं करेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने 25 जनवरी को पांच न्यायाधीशों की पीठ का पुनर्गठन किया था, क्योंकि न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा था कि वह बाबरी मस्जिद से संबंधित एक मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की तरफ से एक वकील के रूप में 1997 में पेश हुए थे।
कल्याण सिंह इस समय राजस्थान के राज्यपाल हैं। नई पीठ में न्यायमूर्ति ललित के अलावा न्यायमूर्ति एन.वी. रमना भी नहीं है। मूल पीठ में न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति एन.वी. रमना, न्यायमूर्ति ललित और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ शामिल थे।