आरयू ब्यूरो, प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक ही व्यक्ति के दो अलग-अलग तिथियों के जन्म प्रमाण पत्र जारी किए जाने का मामला उसके समक्ष आने के बाद इस व्यवस्था को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने प्रदेश के प्रमुख सचिव (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य) और प्रमाण पत्र जारी करने वाले विभाग के प्रमुख को इस मामले में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा कि यह व्यवस्था इस बात को उजागर करती है कि “सभी स्तरों पर किस हद तक बेईमानी मौजूद है।”
न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने प्रमुख सचिव को ऐसे कदम सुझाने को कहा जिससे किसी व्यक्ति को हमेशा केवल एक ही जन्म प्रमाण पत्र जारी हो सके। ये मामला शिवांकी नामक महिला द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया। सुनवाई के दौरान, लखनऊ स्थित भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के क्षेत्रीय कार्यालय के उप-निदेशक ने दो अलग-अगल विभाग द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्रों सहित याचिकाकर्ता से जुड़े कुछ दस्तावेज पेश किए।
ये प्रमाण पत्र अलग-अलग स्थानों से और अलग-अलग जन्म तिथियों के साथ जारी किए गए थे। अदालत ने पाया कि पहला प्रमाण पत्र मनौता के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र द्वारा जारी किया गया था, जिसमें याचिकाकर्ता की जन्म तिथि 10 दिसंबर 2007 दर्ज थी, जबकि दूसरा प्रमाण पत्र हर सिंहपुर की ग्राम पंचायत द्वारा जारी किया गया, जिसमें जन्म तिथि एक जनवरी 2005 दर्ज थी। कोर्ट ने 18 नवंबर को अपने निर्णय में कहा कि यह मामला इस बात को उजागर करता है कि कोई व्यक्ति कितनी आसानी से ऐसे दस्तावेज बनवा सकता है।
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अदालत ने चेतावनी दी कि ऐसे दस्तावेज आपराधिक मामलों में प्रथम दृष्टया साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं। पीठ ने उन उपायों या प्रावधानों का विवरण मांगा जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि विभाग द्वारा कोई फर्जी प्रमाण पत्र जारी न किया जाए। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई दस दिसंबर 2025 के लिए निर्धारित की है।




















