आरयू ब्यूरो
नई दिल्ली। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के 18 अप्रैल को जारी एक बयान पर उन्हें खरी-खरी सुनाई है। साथ ही उनके उस बयान को ‘‘स्तब्ध करने वाला’ बताया है, जिसमें उन्होंने अरोप लगाते हुए यमुना के डूबक्षेत्रों को हुए नुकसान के लिए केंद्र एवं हरित पैनल को दोषी बताया है।
रविशंकर के इस बयान पर एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘आपको जिम्मेदारी का कोई एहसास नहीं है, बोलने की आजादी है तो क्या आप कुछ भी बोल देंगे। यह स्तब्ध करने वाला है।
याचिकाकर्ता मनोज मिश्रा की ओर से पेश हुए वकील संजय पारिख ने पीठ को बताया कि रवि शंकर ने हाल में एक बयान देकर यमुना नदी के डूबक्षेत्रों में विश्व संस्कृति उत्सव आयोजित करने की अनुमति उनके एनजीओ को देने के लिए सरकार और एनजीटी को जिम्मेदार ठहराया है।
जिसके बाद पीठ ने यह बात कही। पारिख ने हरित पीठ को बताया कि आध्यात्मिक गुरु ने एनजीटी के खिलाफ आरोप लगाए हैं। उन्होंने इस बयान को आर्ट ऑफ लिविंग की वेबसाइट, अपने फेसबुक पेज पर यह बयान पोस्ट किया है और उन्होंने इस बात पर लिखित बयान देकर मीडिया को संबोधित भी किया है।
हालांकि एओएल फाउंडेशन के लिए पेश हुए वकील ने विशेषज्ञ पैनल के निष्कर्ष का विरोध किया और कहा कि उन्हें समिति के निष्कर्ष को लेकर कुछ आपत्तियां हैं और उन्होंने रिपोर्ट को दरकिनार किए जाने की अपील की है।
इसके बाद पीठ ने फाउंडेशन और अन्य पार्टियों को इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया और आपत्ति दो सप्ताह में दायर कराने को कहा और मामले की आगे की सुनवाई के लिए नौ मई की तारीख तय की है।