आरयू वेब टीम। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को फटकार लगाते हुए कहा कि एजेंसी को ‘बदमाशों की तरह’ काम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती और उसे सख्ती से कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा। अदालत ने ईडी द्वारा दर्ज मामलों में दोषसिद्धि की बेहद कम दर पर गंभीर चिंता व्यक्त की।
जस्टिस सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा, ‘हम प्रवर्तन निदेशालय की छवि को लेकर भी चिंतित हैं।’ शीर्ष अदालत 2022 के उस फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की गिरफ्तारी की शक्तियों को बरकरार रखा गया था।
इस बीच केंद्र और ईडी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने समीक्षा याचिकाओं पर सवाल उठाया। साथ ही कहा कि कम दोषसिद्धि दर के लिए प्रभावशाली आरोपियों की टालमटोल की रणनीति को जिम्मेदार ठहराया। राजू ने कहा, ‘प्रभावशाली बदमाशों के पास बहुत साधन होते हैं। वे कार्यवाही को लंबा खींचने के लिए अलग-अलग चरणों में आवेदन दायर करने के लिए वकीलों की फौज रखते हैं। मामले का जांच अधिकारी जांच में समय लगाने के बजाय किसी न किसी आवेदन के लिए अदालत के चक्कर लगाता रहता है।’
वहीं न्यायमूर्ति भुयान ने अपने एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पिछले पांच वर्षों में प्रवर्तन निदेशालय की ओर से दर्ज किए गए पांच हजार मामलों में से दस प्रतिशत से भी कम मामलों में दोषसिद्धि हुई है। न्यायमूर्ति भुयान ने कहा, ‘आप बदमाश की तरह काम नहीं कर सकते, आपको कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा। इसलिए हम इस बात पर जोर दे रहे हैं कि आप अपनी जांच में सुधार करें, क्योंकि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा मामला है।’ जज ने आगे कहा, ‘हमें ईडी की छवि की भी चिंता है। पांच से छह साल की न्यायिक हिरासत के बाद अगर लोग बरी हो जाते हैं, तो इसकी कीमत कौन चुकाएगा?’
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जस्टिस कांत ने कहा कि सभी समस्याओं का समाधान टाडा और पोटा अदालतों जैसी समर्पित अदालतें हैं। पीएमएलए अदालतें दिन-प्रतिदिन की कार्यवाही कर सकती हैं, जिससे मामलों का शीघ्र निपटारा हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘हां, प्रभावशाली आरोपित अभी भी कई आवेदन दायर करेंगे, लेकिन इन आरोपितों और उनके वकीलों को पता होगा कि चूंकि यह दिन-प्रतिदिन की सुनवाई है और उनके आवेदन पर अगले ही दिन फैसला सुनाया जाएगा। अब उन पर कड़ी कार्रवाई करने का समय आ गया है। हम उनके प्रति सहानुभूति नहीं रख सकते। मैं एक मजिस्ट्रेट को जानता हूं, जिसे एक दिन में 49 आवेदनों पर फैसला करना पड़ता है। उनमें से प्रत्येक पर 10-20 पेजों का आदेश पारित करना पड़ता है। ऐसा नहीं चल सकता।’




















