आरयू वेब टीम। देश की सबसे बड़ी अदालत ने बुधवार को गैरकानूनी गतिविधियों के तहत एक मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा न्यूजक्लिक के संस्थापक और प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी और उसके बाद रिमांड को अवैध घोषित कर दिया। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने मामले में न्यूजक्लिक संस्थापकों को रिहा करने का आदेश दिया।
शीर्ष अदालत ने आदेश दिया कि पुरकायस्थ को जमानत और जमानत बांड भरने की शर्त पर रिहा कर दिया जाए। पीठ ने अपने फैसले में इस बात पर गौर किया कि पुरकायस्थ को रिमांड आवेदन की प्रति और गिरफ्तारी के आधार उपलब्ध नहीं कराए गए, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। फैसला सुनाते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा, “अपीलकर्ता को रिमांड आवेदन की एक प्रति प्रदान नहीं की गई थी। इससे अपीलकर्ता की गिरफ्तारी रद्द हो गई, हालांकि हम उसे बिना जमानत के रिहा कर देते, क्योंकि आरोपपत्र दायर हो चुका है, हम उसे जमानत और जमानत बांड के साथ रिहा करें।”
जांच एजेंसी ने यह भी आरोप लगाया कि पुरकायस्थ ने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान चुनावी प्रक्रिया को बाधित करने के लिए एक समूह – पीपुल्स अलायंस फॉर डेमोक्रेसी एंड सेक्युलरिज्म (पीएडीएस) के साथ साजिश रची।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वकील अर्शदीप खुराना ने बताया, “सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी और रिमांड की कार्यवाही को अवैध माना है और पुरकायस्थ की रिहाई का निर्देश दिया है। हमें ट्रायल कोर्ट के समक्ष जमानत बांड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।” यह एक बड़ी और बड़ी राहत है क्योंकि हम शुरू से ही कहते रहे हैं कि उनके खिलाफ पूरी कार्यवाही अवैध थी और गिरफ्तारी का तरीका भी अवैध था जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा है।”
दरअसल उन्हें आतंकवाद विरोधी कानून के तहत तिहाड़ जेल में बंद किया गया है और उन्होंने चिकित्सा आधार पर रिहाई की मांग करते हुए एक लंबित मामले में आवेदन किया है। पुरकायस्थ ने राष्ट्र विरोधी प्रचार को बढ़ावा देने के लिए कथित चीनी फंडिंग को लेकर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के 13 अक्टूबर, 2023 के आदेश को चुनौती दी, जिसमें ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए उन्हें पुलिस हिरासत में भेजा गया था।
यह भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट की बाबा रामदेव व बालकृष्ण को फटकार, तीन बार की हमारे आदेशों की अनदेखी, भुगतना पड़ेगा नतीजा
इससे पहले न्यूजक्लिक के मानव संसाधन विभाग के प्रमुख अमित चक्रवर्ती ने अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली थी। दिल्ली की एक अदालत ने समाचार पोर्टल के खिलाफ दर्ज मामले में चक्रवर्ती को सरकारी गवाह बनने की अनुमति दी थी।
पुरकायस्थ और चक्रवर्ती को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने तीन अक्टूबर को यूएपीए के तहत दर्ज एक मामले में ऑनलाइन समाचार पोर्टल और उसके पत्रकारों से जुड़े 30 स्थानों की तलाशी के बाद गिरफ्तार किया था, जिसमें आरोप था कि उसे चीन समर्थक प्रचार के लिए धन प्राप्त हुआ था। बाद में उन्होंने गिरफ्तारी के साथ-साथ सात दिन की पुलिस हिरासत को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया और अंतरिम राहत के रूप में तत्काल रिहाई की मांग की।
यह भी पढ़ें- कांग्रेस ने पत्रकारों के घर छापेमारी को बताया मोदी सरकार की जाति जनगणना से ध्यान भटकाने वाली रणनीति
उच्च न्यायालय ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया था और कहा था कि उसका विचार है कि “यह तथ्य कि याचिकाकर्ता के खिलाफ स्थिरता, अखंडता, संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले गंभीर अपराधों का आरोप लगाया गया है, यह न्यायालय कोई भी अनुकूल आदेश पारित करने के लिए इच्छुक नहीं है। एफआईआर के मुताबिक, न्यूज पोर्टल को कथित तौर पर “भारत की संप्रभुता को बाधित करने” और देश के खिलाफ असंतोष पैदा करने के लिए चीन से बड़ी मात्रा में फंडिंग आई।