उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले सुदर्शन रेड्डी का भावुक संदेश, हमारा कर्तव्य है हम लोकतांत्रिक गणराज्य की आत्मा की करें रक्षा

सुदर्शन रेड्डी
वीडियो के माध्यम से संदेश देते सुदर्शन रेड्डी।

आरयू वेब टीम। आगामी नौ सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले विपक्षी दल की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी ने एक भावुक संदेश जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने कहा कि माननीय सदस्यगण मैं आपसे कुछ शब्द कहना चाहूंगा। उन्होंने कहा कि ये उम्मीदवारी उनकी निजी महत्वाकांक्षा नहीं है, बल्कि देश की लोकतांत्रिक संरचना को बचाने की सामूहिक कोशिश है।

सांसदों को दिए संदेश में रेड्डी ने कहा कि जैसे-जैसे देश में लोकतांत्रिक स्पेस सिमट रहा है, हमारा कर्तव्य है कि हम लोकतांत्रिक गणराज्य की आत्मा की रक्षा करें। आगे कहा कि उपराष्ट्रपति पद के चुनाव दो से तीन दिन में होने वाले हैं। मेरी सभी से दरखास्त है कि देश के हित में सोच-समझकर मतदान करें। मुझे पूरा विश्वास है कि आप जो भी निर्णय लेंगे, वो मेरे या आपके हित में नहीं, बल्कि देश के हित में होगा। जो भी आपका निर्णय होगा, मैं वो स्वीकार करने के लिए तैयार हूं।

सुदर्शन रेड्डी ने आगे कहा कि ये देश हम सबका है। देश को संभालकर रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। ये केवल उप-राष्ट्रपति पद के लिए वोट नहीं है, ये भारत की आत्मा के लिए वोट है। आइए, हम सब मिलकर अपने गणतंत्र को मजबूत बनाएं और एक ऐसी विरासत बनाएं जिस पर आने वाली पीढ़ियां गर्व कर सकें।

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रेड्डी ने कहा कि जैसे-जैसे देश में लोकतांत्रिक स्पेस सिमट रहा है, हमारा कर्तव्य है कि हम लोकतांत्रिक गणराज्य की आत्मा की रक्षा करें। उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र टकराव नहीं, सहयोग पर चलता है। उन्होंने कहा कि मेरी ताकत सुनने, समझाने और सहमति बनाने में है। रेड्डी ने आगे कहा कि मैं आपसे अपने लिए समर्थन नहीं मांग रहा, बल्कि उन मूल्यों के लिए मांग रहा हूं जो हमें एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनाते हैं। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि इस चुनाव में किसी पार्टी का व्हिप नहीं होता, इसलिए सांसदों को अपने वोट देशभक्ति और संवैधानिक मूल्यों के आधार पर देना चाहिए।

इसके साथ ही अपनी राज्यसभा की भूमिका पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि यह सदन ऐसा मंच होना चाहिए जहां राष्ट्रीय हित, दलगत राजनीति से ऊपर हों। इस दौरान रेड्डी ने सांसदों से अपील की कि वे इस चुनाव को सिर्फ एक औपचारिक प्रक्रिया न समझें, बल्कि इसे लोकतंत्र की आत्मा की रक्षा के रूप में देखें।

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