आरयू वेब टीम। सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक जोड़ों की शादी के मामले पर सुनवाई चल रही। इस मामले में केंद्र सरकार ने कहा कि वह समलैंगिक जोड़ों को सोशल बेनेफिट्स देने पर विचार के लिए एक समिति का गठन करने के लिए तैयार है। ये कमेटी कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में बनेगी। इस कमेटी में इस बात पर विचार किया जाएगा कि अगर समलैंगिक जोड़ों के विवाह को कानूनी मान्यता न मिले तो उन्हें कौन-कौन से सामाजिक फायदे उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले में विभिन्न मंत्रालयों के बीच कोऑर्डिनेशन की जरूरत पड़ेगी। कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में समिति बनाई जाएगी और वह याचिकाकर्ताओं के सुझावों पर विचार करेगी। इस मामले पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान बेंच सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल को हुई पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार से सवाल किया था कि क्या वह समलैंगिक जोड़ों को बिना शादी की मान्यता दिए, सोशल बेनिफिट देने के लिए तैयार हैं।
पिछली सुनवाई में जस्टिस एसके कौल ने कहा था कि 2018 में समलैंगिकता को अपराध की कैटिगरी से बाहर किया गया था। अब इस बारे में सोचा जाना जरूरी है कि जो रोजाना की जिंदगी में इन जोड़ों के लिए क्या परेशानी आ सकती है और इसका क्या हल है। जैसे बैंक अकाउंट, गोद लेने की प्रक्रिया और अन्य मामले हैं। इन तमाम मसलों को सरकार को देखना चाहिए।
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कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि क्या समलैंगिक जोड़ों को उनकी शादी को वैध किए बिना सामाजिक कल्याण लाभ दिए जा सकते हैं। न्यायालय ने कहा कि केंद्र द्वारा समलैंगिक यौन साझेदारों के सहवास के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार करने से उस पर इसके सामाजिक परिणामों को पहचानने का “संबंधित दायित्व” बनता है। इस टिप्प्णी की पृष्ठभूमि में न्यायालय ने केंद्र से उपरोक्त सवाल किया। शीर्ष अदालत ने कहा, “आप इसे शादी कहें या न कहें, लेकिन इसे कुछ नाम देना जरूरी है।”