आरयू ब्यूरो, लखनऊ। कांवड़ यात्रा के रास्तों की दुकानों से लेकर ठेलों तक पर दुकानदार का नाम लिखने के भाजपा सरकार के फैसले की जमकर अलोचना हो रही है। विपक्ष से लेकर सोशल मीडिया तक पर लोग इसे समाज को बांटने वाली घिनौनी साजिश बता रहें हैं। वहीं यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने आज भाजपा सरकार के इस फैसले की कड़ी निंदा करते हुए इसे पूरी तरह से असंवैधानिक बताया है।
शुक्रवार को यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर इस फैसले के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यूपी व उत्तराखंड सरकार द्वारा कावंड़ मार्ग के व्यापारियों को अपनी-अपनी दुकानों पर मालिक व स्टाफ का पूरा नाम प्रमुखता से लिखने व मांस बिक्री पर भी रोक का यह चुनावी लाभ के लिए आदेश पूरी तरह असंवैधानिक है। धर्म विशेष के लोगों का इस प्रकार से आर्थिक बायकाट करने का प्रयास अति निंदनीय।
स्वत: संज्ञान ले कोर्ट करे सौहार्द बिगाड़ने वालों पर कार्रवाई: अखिलेश
वहीं इससे पहले गुरुवार को सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने भी योगी सरकार को घेरते हुए पूछा था कि और जिसका नाम गुड्डू, मुन्ना, छोटू या फत्ते है, उसके नाम से क्या पता चलेगा? साथ ही इस मामले पर अखिलेश ने मांग करते हुए कहा था कि न्यायालय स्वत: संज्ञान ले और ऐसे प्रशासन के पीछे के शासन तक की मंशा की जांच करवाकर, उचित दंडात्मक कार्रवाई करे। ऐसे आदेश सामाजिक अपराध हैं, जो सौहार्द के शांतिपूर्ण वातावरण को बिगाड़ना चाहते हैं।
यह भी पढ़ें- गरीब व दलितों को मायावती की सलाह, दुखों को दूर करने के लिए बाबाओं के पाखंड-अंधविश्वास में न फंसे, बसपा से जुड़े
…धन्नासेठ समर्थक होने का यह नया सबूत
बीजेपी सरकार के साथ ही आज मायावती ने कांग्रेस सरकार को भी निशाने पर लिया है। मायावती ने कहा कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार निजी कम्पनियों में स्थानीय लोगों को प्रबंधन स्तर पर 50 व गैरप्रबंधन में 70 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला उचित-अनुचित के विवाद से अधिक, उद्योगपतियों के दबाव में इसका वापस लिया जाना वास्तव में इनका बीजेपी की तरह धन्नासेठ समर्थक होने का यह नया सबूत।
जनहित के ज्वलन्त मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाया
बसपा सुप्रीमो ने आगे कहा कि इन्होंने इसी प्रकार हाल के लोकसभा आमचुनाव को, गरीबी, बेरोजगारी व महंगाई आदि जैसे जनहित के ज्वलन्त मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाया और चुनाव को भाजपा के ’आरक्षण व संविधान विरोधी’ होने की तरफ मोड़ा, जबकि कांग्रेस व भाजपा दोनों गरीब, बहुजन, आरक्षण व संविधान-विरोधी हैं।