आरयू वेब टीम। मथुरा की शाही मस्जिद कमेटी ने केंद्र सरकार पर पूजा स्थल मामले में जानबूझकर जवाब दाखिल नहीं करने का आरोप लगाया है। साथ ही कमेटी ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। कोर्ट में दायर याचिका में मस्जिद कमेटी ने याचिकाओं पर जवाब देने के केंद्र के अधिकार को हटाने के लिए कोर्ट से निर्देश देने की मांग की, ताकि मामला आगे बढ़ सके।
मस्जिद कमेटी ने अपने आवेदन में तर्क दिया कि केंद्र जानबूझकर अपना जवाब दाखिल नहीं कर रही है। जिसकी वजह से पक्षकारों को उनके संबंधित लिखित प्रस्तुतियां और प्रतिक्रियाएं दाखिल करने में परेशानी हो रही है, जो पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को चुनौती देने का विरोध कर रहे हैं। वहीं समिति का कहना है कि वो याचिकाओं के एक समूह में हस्तक्षेपकर्ता है और मथुरा में शाही मस्जिद ईदगाह के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है, जिस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 17 मुकदमों की सुनवाई की जा रही है।
आवेदन में बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 12 दिसंबर को केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया था, बावजूद इसके केंद्र ने जवाब दाखिल नहीं किया। मस्जिद कमेटी ने अपने आवेदन में ये भी कहा कि केंद्र को पहली बार मार्च 2021 में नोटिस जारी किया गया था और उसे कई एक्सटेंशन दिए गए थे, लेकिन उसने अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया है।
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खासतौर पर जब सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने याचिकाओं के बैच पर केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी थी, उसने यह भी आदेश दिया था कि पूजा स्थलों का सर्वेक्षण नहीं किया जा सकता है और कानून की वैधता तय होने तक कोई नया मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी निचली अदालतों को ये भी निर्देश दिया कि वे पूजा स्थलों के सर्वेक्षण से संबंधित मामलों की जांच न करें या ऐसे मामलों में कोई आदेश पारित न करें। पूजा स्थल अधिनियम किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाता है और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने का प्रावधान करता है जैसा कि वह 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था।