सावरकर के नाम को प्रतीक अधिनियम में शामिल करने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज

सुप्रीम कोर्ट

आरयू वेब टीम। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को विनायक दामोदर सावरकर के नाम से संबंधित एक याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में सावरकर के बारे में कुछ तथ्यों को स्थापित करने और उनके नाम के अनुचित उपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग की गई थी। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के किसी मौलिक अधिकार का हनन नहीं हुआ है, इसलिए इसमें न्यायालय का हस्तक्षेप उचित नहीं है।

दरअसल ये याचिका डॉ. पंकज फडणीस ने दाखिल की थी, जिन्होंने स्वयं कोर्ट में पक्ष रखा। उन्होंने सावरकर का नाम “नाम और प्रतीक (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950” की सूची में जोड़े जाने की अपील की थी। ये अधिनियम कुछ विशेष नामों और प्रतीकों के व्यावसायिक प्रयोग पर रोक लगाने के लिए बनाया गया था। फडणीस ने अदालत में कहा, “मैं पिछले तीन दशकों से सावरकर पर शोध कर रहा हूं और यह मेरा नैतिक दायित्व है कि उनके नाम की गरिमा बनी रहे। मेरी मांग है कि लोकसभा अध्यक्ष को निर्देश दिए जाएं कि वे सावरकर का नाम इस कानून की अनुसूची में शामिल करें।”

इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता का कोई मौलिक अधिकार प्रभावित नहीं हो रहा है, इसलिए इस याचिका पर सुनवाई का कोई औचित्य नहीं बनता। अदालत ने कहा, “ऐसे मामलों में हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते। दी गई याचिका में राहत देने का कोई आधार नहीं है। इसे खारिज किया जाता है।”

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कुछ समय पूर्व इसी विषय से जुड़ी एक अन्य सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा सावरकर पर की गई टिप्पणी पर आपत्ति जताई थी। राहुल गांधी ने सावरकर के इतिहास पर बात करते हुए उन पर ब्रिटिश सरकार के ‘सहयोगी’ होने और 60 रुपये ‘पेंशन’ लेने का आरोप लगाया था।

जस्टिस दीपनकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने इस बयान को गैर-जिम्मेदाराना करार दिया था और चेतावनी दी थी कि यदि ऐसी टिप्पणी दोहराई गई, तो अदालत स्वतः संज्ञान ले सकती है। हालांकि, फिलहाल कोर्ट ने इस संबंध में मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन पर रोक लगा दी है।

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