आरयू वेब टीम।
खून की कमी का रोना रोने वाले ब्लड बैंक के जिम्मेदारों का बेहद शर्मनाक और अमावनीय चेहरा सामने आया है। देश भर में ‘रक्तदान महादान’ के इमोशनल नारों के साथ जनता का खून चूसने वाले ब्लड बैंक ने छह लाख लीटर ब्लड नालियों में बहा दिया। रख-रखाव का आभाव बताकर बर्बाद किए गए इन रक्त से हजारों लोगों को नई जिंदगी दी जा सकती थी। बेहद चौंकाने वाला यह शर्मनाक खुलासा एक आरटीआई के जवाब में हुआ है। नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने मीडिया को बताया है कि हर साल करीब सवा लाख यूनिट रक्त को नालियों में बहा दिया जाता है।
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एक इंग्लिश न्यूज पेपर की रिपोर्ट के मुताबिक, पांच साल में छह लाख लीटर से अधिक रक्त बरबाद हुआ है। इसकी गणना लीटर में करें, तो यह पानी के 53 टैंकर के बराबर होगा। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में स्थिति सबसे खराब है। इसकी सबसे बड़ी वजह अस्पतालों और ब्लड बैंकों के बीच तालमेल के अभाव की बात भी सामने आई है।
लाल रक्त कोशिकाओं के अपव्यय में महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक आगे हैं। लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) और प्लाज्मा, जीवन बचाने वाले घटकों का इस्तेमाल भी उनकी एक्सपायरी डेट से पहले नहीं किया जा सका।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2016-17 में ही, 6.57 लाख से अधिक यूनिट रक्त और इसके उत्पाद बरबाद हो गए। चिंता की बात यह है कि व्यर्थ इकाइयों का 50% प्लाज्मा का था, जिसमें एक वर्ष का सेल्फ लाइफ होता है। वर्ष 2016-17 में तीन लाख से अधिक नये ताजे प्लाज्मा को हटा दिया गया, जबकि यह प्रोडक्ट कई फार्मा कंपनियां एलब्यूमिन का उत्पादन करने के लिए आयात करती हैं।
क्षमता पांच सौ यूनिट की इकट्ठा करते थे 3,000 यूनिट
भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी की डॉ जरीन भरुचा कहती हैं कि 500 यूनिट तक का संग्रह स्वीकार्य और प्रबंधनीय है। लेकिन, हमने देखा और सुना है कि 1,000 से 3,000 तक यूनिट इकट्ठा किया जा रहा था। इतने सारे खून को स्टोर करने के लिए स्थान कहां है? लोग नियमित तौर पर बैंकों में जाकर हर तीन महीने में एक बार दान कर सकते हैं।
देश में हर साल 120 लाख खून की है जरूरत
भारत में प्रति वर्ष 120 लाख यूनिट खून की जरूरत पड़ती है, जबकि महज 90 लाख लोग ही हर साल रक्तदान करते हैं। इस तरह हर साल 30 लाख यूनिट कम रक्त उपलब्ध हो पाता है। ऐसे में हर साल इतने रक्त की बरबादी ब्लड बैंकों, अस्पतालों और रक्त संग्रहण करनेवालों की लापरवाही को ही दर्शाता है।
ब्लड के बदले लोग कई बार चुकाते है पैंसे
दिल्ली स्थित नेशनल थैलेसेमिया वेलफेयर सोसाइटी के डॉ जेएस अरोड़ा कहते हैं कि उन्होंने देखा है कि गंभीर रूप से बीमार लोगों के परिजनों से एक बोतल खून के लिए कई बार पैसे वसूले जाते हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि उनकी सोसाइटी ने ऑनलाइन व्यवस्था की है और ब्लड बैंकों से कहा है कि वे अपना स्टॉक लगातार अपडेट करते रहें, लेकिन अब भी बहुत कम लोग ही इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।