आरयू वेब टीम। हाल ही में कई ऐसे मामले सामने आए, जहां सरकार की कमियों को उजागर करने वाले पत्रकारों के ऊपर राजद्रोह का केस दर्ज हुआ। ऐसा ही मामला पत्रकार विनोद दुआ का भी है, विनोद दुआ के खिलाफ भी राजद्रोह अथवा देशद्रोह का मामला चल रहा था। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लेते हुए केस को रद्द कर दिया है। साथ ही साफ किया कि वर्ष 1962 का आदेश हर पत्रकार को ऐसे आरोप से संरक्षण प्रदान करता है।
वरिष्ठ पत्रकार दुआ ने इस एफआईआर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। सुप्रीम कोर्ट ने केस को रद्द कर लिया, फिलहाल न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने दुआ के उस अनुरोध को खारिज कर दिया, जिसमें दुआ ने आग्रह किया कि 10 साल का अनुभव करने में वाली किसी भी जर्नलिस्ट पर एफआइआर तब तक दर्ज नहीं की जानी चाहिए जब तक कि हाई कोर्ट जज की अगुवाई में कठिन पैनल इसे मंजूरी न दे।
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इस पर कोर्ट ने कहा कि यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र पर अतिक्रमण की तरह होगा। सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण रूप से एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि हर जर्नलिस्ट को ऐसे आरोपों से संरक्षण प्राप्त है। कोर्ट ने कहा, ‘हर जर्नलिस्ट, राजद्रोह पर केदारनाथ सिंह केस के फैसले के अंतर्गत संरक्षण का अधिकार होगा। ‘1962 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला कहता है कि सरकार की ओर से किए गए उपायों को लेकर कड़े शब्दों में असहमति जताना राजद्रोह नहीं है।
इससे पहले न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने पिछले साल छह अक्टूबर को दुआ, हिमाचल प्रदेश सरकार और मामले में शिकायतकर्ता की दलीलें सुनने के बाद याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। शीर्ष अदालत ने 20 जुलाई को इस मामले में विनोद दुआ को किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से प्रदत्त संरक्षण की अवधि अगले आदेश तक के लिए बढ़ा दी थी।
भाजपा नेता श्याम ने शिमला जिले के कुमार सैन थाने में पिछले साल छल मई को राजद्रोह, सार्वजनिक उपद्रव मचाने, मानहानिकारक सामग्री छापने आदि के आरोप में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दुआ के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी और पत्रकार को जांच में शामिल होने को कहा गया था। श्याम ने आरोप लगाया था कि दुआ ने अपने यूट्यूब कार्यक्रम में प्रधानमंत्री पर कुछ आरोप लगाए थे।