आरयू वेब टीम। बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता व ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद 98 वर्ष की आयु में मुंबई के एक अस्पताल में बुधवार को उनका निधन हो गया। सांस लेने में तकलीफ होने के बाद पिछले बुधवार को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह एक महीने में दूसरी बार अस्पताल में भर्ती हुए थे। दिलीप कुमार के निधन से फिल्म जगत समेत देश भर में शोक की लहर है।
दिलीप कुमार के निधन की जानकरी उनके ऑफिशल ट्विटर हैंडल से दी गई है। जिसके बाद से फिल्म इंडस्ट्री के लोग और उनके फैंस सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
दिलीप कुमार का जन्म पेशावर में 11 दिसंबर 1922 को हुआ। उनके पिता का नाम लाला गुलाम सरावर खान और मां का नाम आयशा बेगम था। उनके पिता फल बेचते थे। युसूफ खान ने देवलाली में स्कूलिंग की। वो राज कपूर के साथ बड़े हुए जो उनके पड़ोसी भी थे। बाद में दोनों ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई।
यह भी पढ़ें- दिलीप कुमार के छोटे भाई की कोरोना से मौत
1940 के दशक युसूफ खान ने घर छोड़ दिया और पूणे चले गए। एक पारसी कैफे ओनर की मदद से उनकी मुलाकात एक कैंटीन कॉनट्रैक्टर से हुई। फिर अच्छी अंग्रेजी बोलने की वजह से पहला काम मिला। उन्होंने आर्मी क्लब में सैंडविच का स्टॉल लगाया और जब कॉनट्रैक्ट खत्म हुआ तो वो 5000 कमा चुके थे। इसके बाद वो बॉम्बे अपने घर वापस आ गए।
वहीं फिल्मी करियर की बात करें तो 1943 में उनकी मुलाकात डॉक्टर मसानी से चर्चगेट पर हुए। उन्होंने उनसे बॉम्बे टॉकीज में काम करने को कहा। वहीं पर युसूफ खान की मुलाकात देविका रानी से हुई। देविका रानी ने उन्हें 1250 रुपये की सैलरी पर इस कंपनी में नौकरी दी। यहां उनकी मुलाकात अशोक कुमार और सशाधर मुखर्जी से भी हुई जिन्होंने उनसे नेचुरल एक्टिंग करने को कहा। कुछ ही सालों में ये दोनों उनके दोस्त बन गए। शुरूआत में युसूफ खान यहां पर स्टोरी लिखने और स्क्रिप्ट को सुधारने में मदद करते थे, क्योंकि उनकी उर्दु अच्छी थी। बाद में देविका रानी ने उन्हें नाम बदलकर दिलीप कुमार रखने को कहा। उसके बाद देविका रानी ने ही उन्हें फिल्म ज्वार भाटा में कास्ट किया। ये फिल्म कुछ खास नहीं चली।
1947 में रिलीज हुई फिल्म जुगनू से उन्हें पहचान मिली। इस फिल्म में उनके साथ अभिनेत्री नूर जहां थीं। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही। इसके बाद 1948 में उन्होंने शहीद और मेला जैसी बड़ी हिट फिल्में दीं। जबकि 1949 में रिलीज हुई फिल्म अंदाज ने उनके करियर को बड़ा ब्रेक दिया। इस फिल्म को महबूब खान ने बनाया जिसमें उनके साथ नरगिस और राज कपूर थे। इसके बाद इसी साल शबनम रिलीज हुई ये फिल्म भी हिट रही।
साल 1950 में भी दिलीप कुमार ने बहुत सारी हिट फिल्में दीं। जोगन (1950),बाबुल (1950), हलचल (1951), दीदार (1951), तराना (1951), दाग (1952), संगदिल (1952), शिकस्त (1953), अमर (1954), उड़न खटोला (1955), इंसानियत (1955) इसमें देवानंद थे, देवदास (1955), नया दौर (1957), यहूदी (1958), मधुमती (1958) और पैगाम (1959)।
उनकी फिल्म मुगल-ए-आजम उस वक्त की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी। अगस्त 1960 में रिलीज हुई यह फिल्म उस वक्त की सबसे महंगी लागत में बनने वाली फिल्म थी।
दिलीप कुमार को आठ फिल्मफेयर अर्वाड मिले। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा अवॉर्ड जीतने के लिए दिलीप कुमार का नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। दिलीप कुमार को साल 1991 में पद्म भूषण और 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 1994 में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से नवाजा गया। 2000 से 2006 तक वह राज्य सभा के सदस्य भी रहे। 1998 में वह पाकिस्तान के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से भी सम्मानित किए गए।