आरयू ब्यूरो,
गोरखपुर। बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित होने की वजह से हुई 30 बच्चों की मौत की डीएम द्वारा शुरूआती जांच में मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रधानाचार्य समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों एवं कर्मचारियों के साथ ही ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता कम्पनी को जांच समिति ने दोषी पाया है। वहीं लम्बे समय से दोषी के रुप में चर्चा में आए डॉ कफील खान को क्लीनचिट मिल गई है।
जिलाधिकारी राजीव रौतेला द्वारा गठित पांच सदस्यीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता कम्पनी मेसर्स पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड ने ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित कर दी, जिसके लिए वह जिम्मेदार है। वहीं जांच समिति ने डॉक्टर सतीश को बीते 11 अगस्त को बिना किसी लिखित अनुमति के मेडिकल कॉलेज से गैरहाजिर होने व वार्ड में ऑक्सीजन की निर्बाध आपूर्ति के लिए जिम्मेदार थे।
लिहाजा वह अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाही और मेडिकल कॉलेज के एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम वार्ड के नोडल अधिकारी डॉक्टर कफील खान ने एनेस्थीसिया विभाग के प्रमुख डॉक्टर सतीश कुमार को वार्ड का एयर कंडीशनर खराब होने की लिखित सूचना दी थी, लेकिन उसे समय पर ठीक नहीं किया गया। जिसके लिए जांच समिति ने उन्हें प्रथम दृष्ट्या दोषी पाया है।
इसके साथ ही मेडिकल कॉलेज के चीफ फार्मासिस्ट गजानन जायसवाल पर ऑक्सीजन सिलेंडरों की स्टॉक बुक और लॉग बुक को अपडेट करने की जिम्मेदारी थी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। लॉगबुक में कई जगह ओवरराइटिंग भी की गई है। लॉगबुक के प्रभारी डॉक्टर सतीश ने उस पर दस्तखत भी नहीं किए, जिससे यह सिद्ध होता है कि इस मुद्दे को ना तो डॉक्टर सतीश और न ही मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉक्टर राजीव मिश्रा ने दिखाई। इसके अलावा डॉ राजीव का दस अगस्त को गैर हाजिर रहना भी उनकी लापरवाही की वजह पाया गया है।
जांच समिति ने पाया है कि डॉक्टर राजीव मिश्र पिछली 10 अगस्त को, जब बच्चों की मौत का सिलसिला शुरू हुआ, गोरखपुर से बाहर थे। इसके अलावा डॉक्टर सतीश भी 11 अगस्त को बिना अनुमति लिये मुम्बई रवाना हो गये। अगर इन दोनों अधिकारियों ने बाहर जाने से पहले ही समस्याओं को सुलझा लिया होता तो बड़ी संख्या में बच्चों की मौत नहीं होती।
दोनों ही अधिकारियों को आपूर्तिकर्ता कम्पनी द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित किये जाने की जानकारी अवश्य रही होगी। जांच समिति ने यह भी पाया है कि मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉक्टर राजीव मिश्रा ने बाल रोग विभाग के अत्यन्त संवेदनशील होने के बावजूद उसके रखरखाव और वहां की जरूरत की चीजों के एवज में भुगतान पर ध्यान नहीं दिया। जांच समिति ने यह भी पाया कि ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता कम्पनी ने अपने बकाया भुगतान के लिए बार-बार निवेदन किया, लेकिन पांच अगस्त को बजट उपलब्ध होने के बावजूद मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य के समक्ष पत्रावली (बिल) प्रस्तुत नहीं की गई। इसके लिये लेखा विभाग के दो कर्मियों समेत तीन लोग प्रथम दृष्ट्या दोषी पाये गये हैं।
पांच सदस्यीय जांच समिति ने यह भी पाया है कि स्टॉक बुक में ओवरराइटिंग और ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता कम्पनी के बिलों का श्रृंखलाबद्ध या तिथिवार भुगतान नहीं होना, प्रथम दृष्ट्या वित्तीय अनियमितताओं की तरफ इशारा करता है। इस सबके बावजूद जिलाधिकारी राजीव रौतेला द्वारा गठित पांच सदस्यीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता कम्पनी मेसर्स पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड ने ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित कर दी, उसे ऐसा नहीं करना चाहिये था क्योंकि इसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध मरीजों के जीवन से था। इसके लिए वह भी उतनी ही दोषी पाई गई है। ऐसे में चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा इसका ऑडिट और उच्च स्तरीय जांच कराना उचित होगा।