आरयू वेब टीम। दिल्ली की हवा में दिवाली के बाद और जहर घुल गया है। राजधानी एक बार फिर ‘गैस चैंबर’ में तब्दील हो चुकी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली की वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गई है। लोगों को आंखों में जलन, गले में खराश और सांस लेने में परेशानी हो रही है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक पूरे शहर का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 531 पर दर्ज किया गया है, जो बेहद खतरनाक स्तर माना जाता है। ये हवा सांस लेने लायक नहीं रही। दिल्ली से सटे नोएडा में भी हालात बहुत बेहतर नहीं हैं वहां एक्यूआई 369 है, जबकि गाजियाबाद में यह 402 तक पहुंच गया है, जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है।
सुबह की हवा में हल्की ठंडक के साथ जब लोग टहलने निकले, तो उन्हें सांस लेने में तकलीफ महसूस हुई। कई इलाकों में धुंध इतनी घनी थी कि कुछ मीटर आगे तक भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था। यह दृश्य न केवल दृश्यता घटा रहा है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा बन गया है।
कहां कितना प्रदूषण
केंद्रीय एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली के कई इलाकों में प्रदूषण की स्थिति बेहद गंभीर है-
नरेला: एक्यूआइ 551 (सबसे अधिक)
अशोक विहार: एक्यूआइ 493
आनंद विहार: एक्यूआइ 394
गाजियाबाद: एक्यूआइ 402
नोएडा: एक्यूआइ 369
चंडीगढ़: एक्यूआइ 158
ओवरऑल दिल्ली: एक्यूआइ 531
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यह आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली-एनसीआर की हवा जहरीली हो चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि 400 से ऊपर का एक्यूआइ ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है और यह स्वस्थ लोगों को भी प्रभावित कर सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनी
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि इतनी गंभीर वायु गुणवत्ता में लंबे समय तक बाहर रहना फेफड़ों और हृदय के लिए हानिकारक है। उन्होंने बच्चों, बुजुर्गों और श्वसन रोगों से पीड़ित लोगों को घर में रहने की सलाह दी है। साथ ही डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि यह प्रदूषण आंखों में जलन, गले में खराश, सिरदर्द और सांस लेने में कठिनाई जैसी दिक्कतें पैदा कर सकता है। लोगों को बाहर निकलते समय एन-95 मास्क पहनने और घरों में एयर प्यूरिफायर का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है।
प्रदूषण घटाने में नाकाम
मौसम विभाग के अनुसार, दिल्ली में प्रदूषण के पीछे एक बड़ी वजह हवा की धीमी रफ्तार है। सुबह के समय प्रमुख सतही हवा दक्षिण-पूर्व दिशा से करीब पांच किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चल रही है, जबकि रात में यह आठ किमी प्रति घंटे से कम रह सकती है। धीमी हवाएं प्रदूषक तत्वों को सतह के करीब फंसा देती हैं, जिससे स्मॉग की परत बनी रहती है।