आरयू इंटरनेशनल डेस्क। इस्राइल-हमास युद्ध के बीच गाजा में मानवीय आधार पर संघर्षविराम के लिए जॉर्डन की तरफ से पेश प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित हो गया है। यूएनजीए ने प्रस्ताव को भारी बहुमत से अपनाया है। प्रस्ताव के पक्ष में 120 वोट पड़े, जबकि विरोध में 14 वोट पड़े। वहीं भारत समेत 45 देशों ने मतदान से खुद को अलग रखा। प्रस्ताव में इस्राइल और हमास के बीच मानवीय आधार पर तत्काल संघर्षविराम का आह्वान किया गया है।
साथ ही यह बिना किसी रुकावट के गाजा तक मानवीय सहायता पहुंचाने का आह्वान करता है, जिसमें पानी, बिजली और वस्तुओं के वितरण को फिर से शुरू करना शामिल है। वहीं भारत, ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा सहित 45 देशों ने मतदान से दूरी बनाई। कनाडा ने इस्राइल पर हमास के हमले की निंदा के लिए प्रस्ताव में एक संशोधन पेश किया, जो खारिज हो गया। चौंकाने वाली बात यह है कि हमास के साथ युद्ध में इस्राइल का मजबूती से समर्थन करने वाले ब्रिटेन और जर्मनी मतदान से अनुपस्थित रहे।
इन देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ किया मतदान
अमेरिका, इस्राइल, ऑस्ट्रिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, फिजी, ग्वाटेमाला, हंगरी, मार्शल द्वीप, माइक्रोनेशिया, नाउरू, पापुआ न्यू गिनी, पैराग्वे और टोंगा ने जॉर्डन द्वारा पेश प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया।
युद्ध रोकने के लिए सब कुछ करने की जरूरत
वहीं संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीन के राजदूत रियाद मंसूर ने कहा कि गाजा में युद्ध को रोकने के लिए सब कुछ करने की जरूरत है, ताकि बच्चों और आम नागरिकों की हत्याओं के साथ और अधिक विनाश को रोका जा सके। मंसूर ने कहा कि फलस्तीनी प्रतिनिधिमंडल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से युद्धविराम रोकने के लिए प्रस्ताव अपनाने की कोशिश करता रहेगा।
अमेरिका द्वारा समर्थित संशोधन प्रस्ताव
यूएनजीए में कनाडा और अमेरिका द्वारा समर्थित संशोधन प्रस्ताव पास नहीं हो सका, जिसमें हमास के आतंकी हमले और लोगों को बंधक बनाने की निंदा की गई थी। अरब देशों के एक समूह द्वारा गाजा में तत्काल मानवीय आधार पर संघर्षविराम के लिए पेश किए गए प्रस्ताव के जवाब में कनाडा ने संशोधन प्रस्ताव पेश किया था।
हमास का जिक्र नहीं करने के…
अमेरिका ने भी हमास का जिक्र नहीं करने के कारण जॉर्डन द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव की आलोचना करते हुए संशोधन का समर्थन किया। 88 सदस्यों ने संशोधन के पक्ष में मतदान किया, जबकि 55 देशों ने विरोध में और 23 सदस्यों ने मतदान में भाग नहीं लिया। इस तरह संशोधन दो-तिहाई बहुमत हासिल करने में विफल रहा।