आरयू ब्यूरो, लखनऊ। यूपी के धर्मांतरण अध्यादेश को चुनौती देने केे मामले में मंगलवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में सुनवाई हुई। हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्पष्ट किया है कि शादी के लिए धर्मांतरण की अनुमति नहीं है, जब तक कि धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति की आस्था व विश्वास उस धर्म में न हो। न्यायालय ने उक्त टिप्पणी के साथ कथित पति की ओर से दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल सदस्यीय पीठ ने मोहम्मद तालिब द्वारा उसकी कथित पत्नी के नाम से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर पारित किया। याचिका में कहा गया था कि उसकी कथित पत्नी को पत्नी के पिता ने अवैध हिरासत में अपने घर पर रखा हुआ है। कहा गया कि शादी से पूर्व दोनों के प्रेम सम्बंध थे। बाद में कथित पत्नी ने हिन्दू धर्म छोड़कर इस्लाम धर्म अपना लिया व दोनों ने शादी कर ली, लेकिन पत्नी के पिता को यह शादी मंजूर नहीं है।
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याचिका में कथित पत्नी को कोर्ट में हाजिर कराने का आदेश दिये जाने की मांग की गई। वहीं याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार के अधिवक्ता का कहना था कि लड़की के पिता ने 20 अप्रैल 2019 को विभूति खंड थाने में 17 साल की बेटी के अपहरण की एफआइआर लिखवाई है। कहा गया कि याची उक्त मामले में अभियुक्त है। सरकारी वकील ने यह भी दलील दी कि एक विशेष समुदाय की लड़कियों को बहला-फुसला कर धर्मांतरण करवाना और फिर शादी कर लेने की एक चाल चल रही।
न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात पारित अपने आदेश में कहा कि इस तरह की याचिका में कोर्ट को यह अवश्य देखना चाहिए कि पति का दावा कर रहे व्यक्ति ने महिला से वैध शादी की है अथवा नहीं तथा महिला वास्तव में अवैध हिरासत में है अथवा नहीं। वर्तमान मामले में याची यह सिद्ध करने में असफल रहा है कि महिला अवैध हिरासत में है। जिस महिला को अवैध हिरासत में बताया जा रहा है, वह अपने माता-पिता के साथ रह रही है। उसने कहीं भी इस तरह की शिकायत नहीं दर्ज कराई है कि उसे अवैध हिरासत में रखा गया है। न्यायालय ने इन टिप्पणियों के साथ याचिका को खारिज कर दिया।