आरयू वेब टीम। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को झारखंड स्थापना दिवस के मौके पर पुराना जेल परिसर स्थित भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान सह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय का ऑनलाइन उद्घाटन कर बिरसा मुंडा के संघर्ष और इस संग्रहालय के उद्देश्य और नीतियों की चर्चा की। प्रधानमंत्री ने कहा, जब भी मौका मिले रांची जाइये। देखने के लिए बहुत कुछ है। साथ ही कहा कि इस महत्वपूर्ण अवसर पर देश का पहला जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी म्यूजिम देशवासियों के लिए समर्पित है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ दिन पहले मैंने हर राज्य में आदिवासी म्यूजियम की स्थापना का आह्वान किया था। मुझे खुशी है कि हर राज्य इस ओर केंद्र सरकार के साथ बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि जल्द ही नौ और राज्यों में आदिवासी म्यूजियम की स्थापना होगी। साथ ही कहा, मैंने अपने जीवन का अहम हिस्सा आदिवासियों के साथ बिताया है। आज का दिन व्यक्तिगत रूप से भावुक करने वाला है।
वहीं बिरसा संग्रहालय और यहां के महत्व का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा, भारत की पहचान और भारत की आजादी के लिए लड़ते हुए भगवान बिरसा मुंडा ने रांची की इसी जेल में बिताये थे। जहां बिरसा के कदम पड़े हों, वह हम सबके लिए पवित्र तीर्थ है।
यह सिर्फ संग्रहालय नहीं कई परंपराओं और पीढ़ियों से चली आ रही कलाओं का भी संरक्षण करेगा। मोदी ने कहा, इस संग्रहालय में सिद्धू कान्हू से लेकर ओटोहो तक, तेलगा खड़िये से गया मुंडा तक। जतरा टाना भगत से लेकर अनेक भारतीय वीरों की प्रतिमा है, उनके जीवन के बारे में भी बताया गया है। देशभर में ऐसे नौ संग्रहालय बनने हैं। इन म्यूजियम से ना सिर्फ देश की नयी पीढ़ी आदिवासी इतिहास के गौरव से परिचित होगी बल्कि इन क्षेत्रों में पर्यटन को भी नयी गति मिलेगी। ये आदिवासी समाज के गीत- संगीत, कला, कौशल, शिल्पकलाओं का भी संरक्षण करेगी।
यह भी पढ़ें- 82वीं मन की बात में बोले प्रधानमंत्री मोदी, सौ करोड़ वैक्सीन के बाद देश बढ़ रहा नई ऊर्जा से आगे
वहीं पीएम मोदी ने कहा, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी थी। उनके लिए स्वराज के मायने क्या थे ? भारत के लोगों के पास फैसला लेने की शक्ति आये, धरती आबा की लड़ाई उस सोच के खिलाफ भी थी जो आदिवासी की सोच को मिटाना चाहती थी। वह जानते थे कि यह समाज के कल्याण का रास्ता यह नहीं है। वो आधुनिक शिक्षा के पक्षधर थे, अपने ही समाज के कमियों के खिलाफ बोलने का साहस दिखाया। नशा के खिलाफ अभियान चलाया। नैतिक मुल्य और सकारात्मक सोच की यह ताकत थी कि जनजातीय समाज के ऊपर नयी ऊर्जा दी।
ये लड़ाई जल, जंगल, जमीन की थी आजादी की लड़ाई की थी। यह इतनी ताकतवर इसलिए थी कि उन्होंने बाहर की कमजोरियों के साथ उन्होंने भीतर की कमजोरियों से भी लड़ना सीखाया था। भगवान बिरसा ने समाज के लिए जीवन दिया, अपने प्राणों का परित्याग किया, इसलिए वह आज भी हमारी आस्था में हमारी भावना में भगवान के रूप में हैं।