आरयू वेब टीम। यूपीएससी में लेटरल एंट्री को लेकर विपक्ष के हमले और विरोध झेल रही केंद्र सरकार ने आखिरकार मंगलवार को विज्ञापन पर रोक लगा दी है। इस संबंध में कार्मिक मंत्री ने यूपीएससी चेयरमैन को लेटर लिखा है। जिसमें केंद्रीय कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी चेयरमैन से कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश पर सीधी भर्ती के विज्ञापन पर रोक लगाई गई है। साथ ही कहा कि सरकार ने यह फैसला लेटरल एंट्री के व्यापक पुनर्मूल्यांकन के तहत लिया है।
दरअसल लेटरल एंट्री को संविधान में निहित समानता एवं सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप करने की जरूरत थी। इससे पहले यूपीएससी ने 17 अगस्त को एक विज्ञापन जारी किया था, जिसमें लेटरल एंट्री के जरिए 45 जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल की भर्तियां निकाली गई थी।
बता दें कि लेटरल भर्ती में कैंडिडेट्स बिना यूपीएससी की परीक्षा दिए रिक्रूट किए जाते हैं। इसमें आरक्षण के नियमों का भी फायदा नहीं मिलता है। विपक्ष के अन्य नेताओं के साथ ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती कर खुलेआम एसी, एसटी और ओबीसी वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है।
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इस पर विवाद बढ़ने पर केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव सामने आए थे और दावा किया था कि नौकरशाही में लेटरल एंट्री नई बात नहीं है। 1970 के दशक से कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारों के दौरान लेटरल एंट्री होती रही है और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी ऐसी पहलों के प्रमुख उदाहरण हैं।
दरअसल, यूपीएससी ने 18 अगस्त को विभिन्न मंत्रालयों में ज्वाइंट सेक्रेटरी, डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेटरी के पदों पर 45 स्पेशलिस्ट नियुक्त करने के लिए भर्ती निकाली। इन भर्तियों को लेटरल एंट्री के जरिए किया जाना था, हालांकि इसे लेकर विपक्ष ने हंगाम खड़ा कर दिया और सरकार के इस कदम को आरक्षण छीनने की व्यवस्था बताया। लेटरल एंट्री के जरिए होने वाली भर्तियों के जरिए प्राइवेट सेक्टर के लोगों को भी बिना मंत्रालयों के प्रमुख पदों पर काम करने का मौका मिलता।
वहीं इसको लेकर बवाल मचा था, विपक्ष के लोगों का कहना था कि मोदी सरकार जनता को शौचालय देने के बाद अपने लोगों को सचिवालय बांट रहीं हैं। इसके जरिए भाजपा और आरएसएस के लोगों को भी विभाग में घुसाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लग रहे थे।