आरयू ब्यूरो, लखनऊ। किसी भी मनुष्य की अभिव्यक्ति का आधार उसकी भाषा होती है। हर किसी के संवाद का माध्यम भी भाषा होती है। इसके बगैर अभिव्यक्ति संभव नहीं है। इसके बाद भी हमसे चूक हो जाती है। जिस भाव के साथ हम अपनी भाषा को व्यक्त करते है, वही हमारी ताकत है। भाषा, रोजगार का बहुत बड़ा माध्यम है। संस्कृत को भारत के ऋषि बहुत पहले रोजगार से जोड़ चुके हैं।
उक्त बातें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार भाषा संस्थान और लखनऊ यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग की ओर से शनिवार को मालवीय सभागार में तीन दिवसीय भारतीय भाषा महोत्सव 2020 के शुभारंभ अवसर पर कही। योगी ने कहा कि शताब्दी वर्ष में भारतीय भाषा महोत्सव एक बड़ा कदम है। मेरा मानना है कि संस्कृत पढ़ने वाला व्यक्ति कभी भूख से नहीं मर सकता, बशर्ते वह अपनी बुद्धि का उपयोग सही ढंग से करे। आप एक भाषा सीख लो तो आपका रास्ता आसान हो जाएगा। भाषा में मजबूती वाले यूपी मूल के शिक्षक पूरे देश में हैं। उन्होंने कहा कि भाषा को बोझ न मान आर्थिक स्वावलंबन बनाएं।
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प्रदेश सरकार की इंटर्नशिप स्कीम भाषा के साथ भी लागू होगी। यह तो हर जनपद में यूथ हब बनाने की स्कीम है। संस्कृत का व्यक्ति पुरोहित का कार्य करता है तो लोग उसे दक्षिणा भी देते हैं और पैर भी छूते हैं, इससे बड़ा सम्मान नहीं हो सकता। अवधी को भले ही भारतीय संविधान ने मान्यता न दी हो लेकिन भारत का जन-जन प्रतिदिन समर्थन देकर श्रीरामचरितमानस पढ़ता है। यह भारत की वास्तविक ताकत है और हमें इसे पहचानना होगा।
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि महात्मा गांधी जी ने पूरे देश का भ्रमण किया और हिंदी के माध्यम से सभी को जोड़ने का प्रयास किया। जिन अंग्रेजों के बारे में कहा गया कि उनके राज्य में कभी सूर्य अस्त नहीं होता, उन्हें अपना बोरिया-बिस्तर लेकर देश से भागना पड़ा। जब महात्मा गांधी जी के हाथों में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व आया तो उन्होंने प्रखरता से कहा कि हिंदी देश की राष्ट्रभाषा है।
उन्होंने हिंदी को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने की वकालत की। यह वर्ष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का 150वां जयंती वर्ष तथा लखनऊ विवि का शताब्दी वर्ष है। इस महोत्सव का आयोजन भारतीय भाषा के प्रति हमारी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम बनेगा। इसके लिए मैं लखनऊ विश्वविद्यालय को हृदय से धन्यवाद देता हूं। भारतीय भाषा महोत्सव का उद्घाटन करते हुए मुझे अत्यंत आनंद की अनुभूति हो रही है। प्रदेश की राजधानी में भारतीय साधना और संस्कृति का आधार भारतीय भाषा के मनीषियों की उपस्थिति एक महत्वपूर्ण संदेश दे रही है।