मायावती को भारी पड़ी योगी सरकार की तारीफ, दलित-पिछड़े अभ्यर्थियों ने बसपा सुप्रीमो के आवास पर किया प्रदर्शन

दलित-पिछड़े अभ्यर्थी
मायावती आवास के बाहर प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों को बस में भर्ती पुलिस।

आरयू ब्यूरो, लखनऊ। नौ अक्टूबर की रैली में मायावती का योगी सरकार की तारीफ करना भारी पड़ गया है। लम्बे समय से नियुक्ति की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों ने रविवार को खुद को दलित-पिछड़ों की हितैषी मानी जाने वाली बसपा मुखिया मायावती के आवास का रुख कर लिया है।

शिक्षक भर्ती से बाहर किए गए दलित व पिछड़े वर्ग के  अभ्यर्थियों ने मायावती के आवास के पास प्रदर्शन और जमकर नारेबाजी कर कहा मायावती भाजपा सरकार से बात करें। सूचना पर पहुंची पुलिस प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों को हटाने लगी, जिससे पुलिस व अभ्यर्थियों तो तीखी नोकझोंक हुई। प्रदर्शनकारी छात्र पीछे हटने को तैयार नहीं थे। वे बसपा सुप्रीमो से मिलने की मांग पर अड़े रहे।

शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थियों का कहना है कि मायावती से अपनी समस्याओं को लेकर अपील करने आए हैं। वे विपक्ष की नेता हैं और उनसे उम्मीद है कि वे उनकी समस्या को समझें और उठाएं। अभ्यर्थियों ने ये भी कहा कि नौ अक्टूबर की रैली में मायावती ने भारतीय जनता पार्टी सरकार की प्रशंसा की थी, इसलिए वे चाहेंगे कि उनका मुद्दा भाजपा सरकार तक पहुंचाया जाए और उनकी मदद की जाए।

दरअसल मॉल एवेन्यू स्थित मायावती के आवास के बाहर 69 हजार शिक्षक भर्ती के आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों ने प्रदर्शन किया। इस दौरान छात्रों ने नारेबाजी करते हुए बसपा सुप्रीमो से उनके समर्थन में आने की मांग की, हालांकि जब मौके पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों व पुलिस ने अभ्यर्थियों को रोका तो अभ्यर्थी पूर्व मुख्यमंत्री से मिलने की मांग पर अड़े गए। जिसके बाद बसपा के राष्ट्रीय महासचिव मेवालाल गौतम के हस्तछेप के बाद मामला किसी तरह शांत हुआ। फिर अभ्यर्थियों ने ज्ञापन मेवालाल गौतम को दिया। मेवालाल ने अभ्यर्थियों का आश्वासन दिया कि उनकी बात बसपा प्रमुख तक पहुंचाई जाएगी।

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इस बीच मामला बिगड़ता देख पुलिसकर्मियों ने अभ्यर्थियों  को घेर लिया, फिर उनको घसीटते हुए गाड़ियों में ले जाकर बैठा दिया। महिला पुलिसकर्मियों ने महिलाओं को टांग कर गाड़ी में बैठाया। सभी को ईको गार्डन के पास ले जाकर छोड़ दिया। गौरतलब है कि प्रदर्शनकारियों का कहना था कि हाई कोर्ट में अपने अधिकारों की लड़ाई जीतने के बाद मामला  सुप्रीम कोर्ट चला गया, जहां योगी सरकार की लचर पैरवी की वजह से उन्हें नियुक्ति नहीं मिल पा रही।

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