आरयू वेब टीम। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना शनिवार को अपने एक दिवसीय दौरे पर झारखंड पहुंचे। यहां एक कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने मीडिया को आड़े हाथों लिया। उन्होंने वर्तमान न्यायपालिका के सामने आने वाले मुद्दों को सूचीबद्ध करते हुए कहा कि देश में कई मीडिया संगठन “कंगारू अदालतें चला रहे। कई मुद्दों पर अनुभवी न्यायाधीशों को भी फैसला करना मुश्किल होता है। कई न्यायिक मुद्दों पर गलत सूचना और एजेंडा चलाना लोकतंत्र के लिए हानिकारक साबित हो रहा है।
सीजेआइ ने कहा कि मीडिया अपनी जिम्मेदारियों से आगे बढ़कर लोकतंत्र को पीछे ले जा रहा है। बार और बेंच ने सीजेआई के हवाले से कहा कि प्रिंट मीडिया की कुछ जवाबदेही है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई जवाबदेही नहीं बची है। सोशल मीडिया की इससे भी बदतर स्थिति है। इन दिनों हम न्यायाधीशों पर शारीरिक हमलों की बढ़ती संख्या देख रहे हैं…बिना किसी सुरक्षा या सुरक्षा के आश्वासन के न्यायाधीशों को उसी समाज में रहना होगा, जिस समाज में उन्होंने लोगों को दोषी ठहराया है।
न्यायाधीशों पर शारीरिक हमलों में वृद्धि के बारे में बोलते हुए सीजेआई रमना ने जोर देकर कहा कि राजनेताओं, नौकरशाहों, पुलिस अधिकारियों और अन्य जन प्रतिनिधियों को उनकी नौकरी की संवेदनशीलता के कारण सेवानिवृत्ति के बाद भी अक्सर सुरक्षा प्रदान की जाती थी, “विडंबना यह है कि न्यायाधीशों को समान रूप से संरक्षण विस्तारित नहीं किया जाता है।
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सीजेआई ने कहा, लोग अक्सर भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में लंबे समय से लंबित मामलों की शिकायत करते हैं। कई मौकों पर खुद मैंने लंबित मामलों के मुद्दों को उजागर किया है। मैं न्यायाधीशों को उनकी पूरी क्षमता से कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए भौतिक और व्यक्तिगत दोनों तरह के बुनियादी ढांचे को सुधारने की आवश्यकता की पुरजोर वकालत करता हूं। उन्होंने कहा, लोगों ने एक गलत धारणा बना ली है कि न्यायाधीशों का जीवन बहुत आसान है। इस बात को निगलना काफी मुश्किल है।