आरयू वेब टीम। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने सोमवार को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। राज्य में आज ही भाजपा सरकार के दो साल पूरे हुए हैं। इसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे येदियुरप्पा ने इस्तीफे का ऐलान किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि मैं हमेशा अग्निपरीक्षा से गुजरा हूं। कुछ ही देर बाद उन्होंने राजभवन पहुंचकर राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया। उनका इस्तीफा मंजूर भी कर लिया गया है। हालांकि, नए मुख्यमंत्री के ऐलान तक वे कार्यकारी मुख्यमंत्री बने रहेंगे।
इस दौरान मीडिया से बात करते हुए येदियुरप्पा ने कहा कि उन पर हाईकमान का कोई प्रेशर नहीं है। मैंने खुद इस्तीफा दिया। मैंने किसी नाम को नहीं सुझाया है। पार्टी को मजबूत करने के लिए काम करूंगा। कर्नाटक की जनता की सेवा का मौका देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का शुक्रिया।
गौरतलब है कि बीएस येदियुरप्पा साफ कह चुके हैं कि उनके मुख्यमंत्री पद पर बने रहने को लेकर जो भी फैसला पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व लेगा, उसे वह हर हाल में मंजूर करेंगे। उन्होंने कहा कि वह संतुष्ट और संतुष्ट हैं और अनुशासनात्मक रेखा को पार नहीं करेंगे। “मुझे पार्टी में ज्यादातर पद मिले, जो शायद कर्नाटक में किसी और को नहीं मिले, जिसके लिए मैं पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा का आभार व्यक्त करता हूं।
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बता दें कि येदियुरप्पा सबसे पहले 12 नवंबर 2007 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने, लेकिन महज सात दिन बाद 19 नवंबर 2007 को ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 30 मई 2008 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते इस बार चार अगस्त 2011 को इस्तीफा दिया। तीसरी बार 17 मई 2018 को मुख्यमंत्री बने और फिर महज छह दिन बाद 23 मई 2018 को इस्तीफा हो गया। चौथी बार 26 जुलाई 2019 को मंख्यमंत्री बने और ठीक दो साल बाद इस्तीफा दे दिया।
कर्नाटक में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं और येदियुरप्पा की लिंगायत समुदाय पर मजबूत पकड़ है। ऐसे में उनके इस्तीफे के बाद भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस समुदाय को साधने की होगी। बीते दिन ही विभिन्न लिंगायत मठों के 100 से अधिक संतों ने येदियुरप्पा से मुलाकात कर उन्हें समर्थन की पेशकश की थी। संतों ने भाजपा को चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें हटाया गया, तो परिणाम भुगतने होंगे।
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय 17 प्रतिशत के आसपास है। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 90-100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का असर है। राज्य की तकरीबन आधी आबादी पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा के लिए येदियुरप्पा को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा। ऐसा होने का मतलब इस समुदाय के वोटों को खोना होगा।