आरयू वेब टीम। मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट पेपर लीक को लेकर चल रहे विवाद के बीच पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने रविवार को अनियमितताओं के आरोपों की जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त अधिकारियों से कराने की मांग की और सरकार से सभी राज्यों से इस बारे में गहन विचार-विमर्श करने को कहा कि भविष्य में यह परीक्षा कैसे आयोजित की जाए।
राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भी निशाना साधते हुए कहा कि अगर किसी परीक्षा में परीक्षा तंत्र ही भ्रष्ट हो जाए तो प्रधानमंत्री के लिए चुप्पी साधना ठीक नहीं है। सिब्बल ने सभी राजनीतिक दलों से आगामी संसद सत्र में इस मामले को जोर-शोर से उठाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि इस पर चर्चा होने की उम्मीद कम है क्योंकि सरकार इस मामले के न्यायालय में विचाराधीन होने का हवाला देकर इसकी अनुमति नहीं देगी।
कपिल 29 मई 2009 से 29 अक्टूबर 2012 तक मानव संसाधन विकास (अब शिक्षा विभाग) मंत्री थे। उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) ने वास्तव में धांधली की है और डॉक्टर बनने के लिए आयोजित की जाने वाली जैसी परीक्षा के प्रश्नपत्रों को पहले ही मुहैया कराने के भ्रष्ट आचरण को मीडिया संस्थानों ने उजागर किया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘गुजरात की कुछ घटनाओं से मैं हैरान हूं और ये राष्ट्रीय के लिए चिंता का विषय हैं। मुझे लगता है कि एनटीए को इन गंभीर सवालों का जवाब देना चाहिए।’’
सिब्बल ने कहा कि इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक और निराशाजनक बात यह है कि जब भी ऐसा कुछ होता है और वर्तमान सरकार में भ्रष्टाचार होता है तो ‘‘अंधभक्त’’ इसके लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) को दोषी ठहराना शुरू कर देते हैं और यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि इस तरह के बयान देने से पहले वे पूरी तरह से जानकारी ही नहीं जुटाते हैं। सिब्बल ने रेखांकित किया कि नीट विनियमन वर्ष 2010 में भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) द्वारा इसके निदेशक मंडल के माध्यम से पेश किया गया था और एमसीआई स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन था, न कि शिक्षा मंत्रालय के अधीन।
राज्यसभा सांसद ने कहा, ‘‘इसलिए मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में मेरा इससे कोई ताल्लुक नहीं था। एमसीआई के निदेशक मंडल ने एक विनियमन पेश किया, जिसमें कहा गया था कि एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश पाने वाले छात्रों के लिए एक राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा होनी चाहिए। रिट याचिकाकर्ताओं द्वारा इस विनियमन को चुनौती दी गई थी और 18 जुलाई 2013 को उच्चतम न्यायालय ने यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया था कि एमसीआई के पास नीट शुरू करने का कोई विधायी अधिकार नहीं है।’’ ‘‘यही वजह है कि इसे खारिज किए जाने के बाद 11 अप्रैल 2014 को एक समीक्षा याचिका दायर की गई। समीक्षा की अनुमति दी गई और 2013 का आदेश वापस ले लिया गया।’’
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सिब्बल ने कहा, ‘‘भाजपा सरकार सत्ता में आई और 28 अप्रैल 2016 को शीर्ष अदालत में एक रिट याचिका दायर की जिसमें कहा गया कि चूंकि नीट विनियमन को रद्द करने वाला आदेश वापस ले लिया गया है तो एमसीआई द्वारा जारी विनियमन को लागू क्यों नहीं किया जा रहा है?’’ उन्होंने कहा कि इसके बाद चार अगस्त 2016 को भाजपा सरकार ने धारा 10डी पेश की और भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम में संशोधन किया।
सिब्बल ने कहा, ‘‘आठ अगस्त 2019 को भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम 1956 की जगह राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद अधिनियम पारित किया गया। इसमें एक और धारा 14 शामिल की गई जो नीट परीक्षा का प्रावधान करती है। इसके बाद 29 अक्टूबर 2020 को शीर्ष अदालत ने इस कानून को बरकरार रखा।’’ ‘‘ये विधेयक वर्तमान सरकार द्वारा लाया गया था। इसका संप्रग से कोई लेना-देना नहीं है।’’