आरयू इंटरनेशनल डेस्क। देशभर में जारी कोरोना वायरस कहर के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीन का इंतजार कर रहे लोगों को बड़ा झटका लगा है। अभी तक सबसे विश्वसनीय मानी जा रही एस्ट्राज़ेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल को रोक दिया गया है।
एस्ट्राजेनेका ने एक बयान जारी कर कहा है कि ट्रायल में शामिल एक व्यक्ति के बीमार पड़ने के बाद रोक दिया गया है। हालांकि कंपनी का कहना है कि यह एक रूटीन रुकावट है, क्योंकि टेस्टिंग में शामिल व्यक्ति की बीमारी के बारे में अभी तक कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
हालांकि कंपनी का कहना है कि यह एक रूटीन रुकावट है, क्योंकि टेस्टिंग में शामिल व्यक्ति की बीमारी के बारे में अभी तक कुछ समझ में नहीं आ रहा है। बता दें कि एस्ट्राजेनेका और आक्सफोर्ड द्वारा विकसित की जा रही वैक्सीन का नाम एजेडडी1222 रखा गया था। समाचार एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में चल रहे ट्रायल को फिलहाल रोक दिया गया है और अब एक स्वतंत्र जांच के बाद ही इसे फिर से शुरू किया जा सकेगा।
यह भी पढ़ें- रूस ने बनाई कोरोना की वैक्सीन, पहला टीका राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बेटी को लगा
वहीं दुनिया भर के वैज्ञानिक कोरोना की वैक्सीन विकसित करने के अंतिम पड़ाव पर हैं। माना जा रहा है कि साल के अंत तक यह वैक्सीन बाजार में आ जाएगी, लेकिन इस बीच दुनिया एक नए संकट में उलझती दिख रही है। यह संकट है वैक्सीन राष्ट्रवाद यानि वैक्सीन नेशनलिज्म का। इसका अर्थ है कि जो देश इस वैक्सीन को बनाने में सफलता हासिल करेगा, वही इसका पहला उपयोग भी करेगा। लेकिन डब्लूएचओ ने चेतावनी दी हे कि इससे कोरोना महामारी बढ़ेगी न कि घटेगी। डब्लूएचओ के प्रबंध निदेशक ने कहा कि दुनिया में कहीं भी अगर कोरोना वैक्सीन बनती है तो शुरुआत में दुनियाभर के अलग अलग देशों में जिन लोगों को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है, उन्हें वैक्सीन देने की जरूरत है। न कि एक ही देश के ज्यादातर लोगों को।
डब्लूएचओ ने कहा कि वैक्सीन पर किसी एक देश का हक नहीं बल्कि पूरी दुनिया का हक है। डब्लूएचओ के प्रबंध निदेशक ने जोर देते हुए कहा कि वैक्सीन नेशनलिज्म यानि जो देश वैक्सीन बनाए उसे पहले अपने लिए हि इस्तेमाल करे, से कोरोना महामारी का खतरा बढ़ेगा न कि घटेगा।