अपराध से ज्‍यादा सजा का हो प्रचार-प्रसार, ताकि युवा रहे अपराध से दूर

खालिद रहमान
खालिद रहमान।

विश्‍व का सबसे बड़ा लोकंतात्रिक देश भारत, जहां की आबादी मे 50 प्रतिशत से ज्‍यादा हिस्सेदारी युवाओं की है। हमारे यहां एक तरफ युवा देश को तरक्की की तरफ लेकर जा रहे है, तो दूसरी ओर युवाओं का एक तबका ऐसा है जो अपराध के नए-नए तरीके खोजकर अपराधी बन रहा है।

डिजिटल क्रान्ती की तरफ बढ़ रहे देश मे तमाम युवा ऐसे है, जो डीजिटल अपराध का सहारा लेकर देश की अर्थवस्था पर प्रहार कर रहे हैं। विभिन्‍न सरकारों ने अपराध को देश और समाज के लिए खतरा तो बताया, लेकिन युवा अपराध की ओर न बढ़े इसके लिए आज तक कोई ऐसी कार्ययोजना नही बनाई जिससे युवाओं को अपराध के रास्ते पर जाने से रोका जा सके।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को कैशलेस करने के लिए अभियान भी छेड़ा, लेकिन कैशलेस व्यवस्था का फायदा कुछ अकलमन्द व पढ़े-लिखे युवा अपराधी उठाकर एटीएम कार्ड की क्लोनिंग समेत न जाने कितने नए-नए तरीकों से लोगों की मेहनत की कमाई को चंद मिनटों मे अपना बना रहे हैं।

पिछले दशक मे देखा गया है कि स्कूल कालेजों मे पढ़ने वाले छात्र अपने महंगे शौक पूरे करने के लिए अपराध का रास्‍ता अपना रहे हैं। पकड़े जाने पर उनकी जिन्दगी के वो दिन जिन्हे पढ़ाई मे गुजरना चाहिए वो जेल मे कट जाते हैं। जेल जाने के बाद कच्ची सोच वाले नौजवानो को जेल मे बंद पेशेवर अपराधी अपने फायदे के लिए गुमराह करते है और उन्हे समझाने की बजाए जेल मे सुविधाएं उपलब्ध कराते है। यहीं नहीं यह अपराधी युवाओं को वरगालाकर के साथ ही अपराध की चकाचौंध की कहानियां सुनाकर उनकी सोंच बदल देते है। फिर यही युवा उनके गिरोह में शामिल हो जाते है।

आज तमाम ऐसे अपराधी है जो किसी छोटे अपराध मे जेल गए और जेल से छूटने के बाद वो अपराध के रास्ते से हटने की बजाए बड़े अपराधी के रूप मे सामने आए। युवाओ की अपराध की तरफ जा रही ये दिशा न सिर्फ युवा पीढ़ी के लिए खतरनाक है, बल्कि देश और समाज के लिए भी खतरनाक है।

ऐसे हालात मे केन्द्र और राज्यों की सरकारों को गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। युवाओ का अपराध की तरफ बढ़ते रूझान के भी कई कारण है। पहला कारण तो ये है कि मंहगाई के इस दौर मे युवाओं की बढ़ती हुई महत्वकाक्षाएं, दूसरा सबसे बड़ा कारण है युवाओं मे अपराध की सजाओं की जानकारी का अभाव, तीसरा कारण ये भी माना जा सकता है कि कुछ ऐसे राजनीतिक लोग, जो युवाओं को छात्र जीवन से ही अपने फायदे के लिए बढ़ावा देते है।

साथ ही छात्र के सर पर झूठी हमदर्दी का हाथ रख कर उसे अपराधी बनाते है एक बार अपराध करने के बाद छात्र जब अपराधी बन जाता है तो उसे शरण दे कर उसकी मदद करते है और अपराधी बने छात्र से राजनितिक फायदे उठाते है। कई और छोटे-बड़े कारण है जिन पर गहनता से विचार करने की ज़रूरत है।

सरकार अगर वास्तव मे युवाओं को अपराध के रास्ते पर जाने से रोकने मे गंभीर है तो उसे कुछ ऐसे उपाए करने चाहिए जिनसे युवाओं को अपराध करने से पहले सजा सोंच कर अपने कदम पीछे हटाना पड़े। स्कूलों मे ऐसा प्रावधान हो की पहली कक्षा से ही सभी अपराधों की सजा के बारे मे बच्चो को पढ़ाया जाए। स्कूलों मे छात्रों को बताया जाए कि अपराध करने वाले अपराधी के जेल जाने के बाद उसे समाज सम्मान की निगाह से नही देखता है, बल्कि उससे या तो धृणा करता है या फिर उससे डरता है।

स्कूलों मे बच्चो को महापुरूषो के बारे मे पढ़ाया जाता है, लेकिन अपराध की सजाओं से रू-ब-रू नही कराया जाता है। माना जाता है कि बाल अवस्था मे बच्चों के दिमाग को जिधर चाहो आसानी से मोड़ा जा सकता है। इसलिए स्कूलों मे बच्चे अगर अपराध के काले सच्‍च से वाकिफ होगे तो अपराध करने से पहले ही सजा सोंच कर अपराध के रास्ते पर नही जाएंगे।

प्राईमरी स्कूल हो या विश्वविधालय हर जगह पर हर कक्षा के बच्चों को अपराध की सजा के बारे मे विस्तृत जानकारी शिक्षक द्वारा नियमित रूप से दी जानी चाहिए, क्‍योंकि तमाम ऐसे युवा देखे गए है जो अपराध करने के बाद जब पकड़े गए तो उन्हे उस अपराध की सजा का तनिक भी ज्ञान नही था, जिसके लिए वो सलाखो के पीछे पहुंचे थे।

युवाओं और अन्य लोगो को अपराध के रास्ते पर जाने से रोकने का एक और तरीका भी अपनाया जा सकता है वो ये कि अपराधिक घटनाओं मे पकड़े गए युवाओं को कोर्ट जब सजा सुनाए तो उसका भी बड़े पैमाने पर सरकारी स्तर पर प्रचार-प्रसार होना चाहिए।

सजा छोटी हो या बड़ी लेकिन देश के प्रत्येक नागरिक को उसकी जानकारी होना चाहिए। जिस तरह से राजनितिक पार्टियां चुनाव के समय मतदाताओ को जागरूक करने के लिए नुक्कड़ नाटक और जागरूकता रैलिया कर लोगो को मतदान के लिए जागरूक करती है उसी तरह से युवाओं को अपराध के प्रति जागरूक करने के लिए सरकार अगर पहल करे तो मुमकिन है कि पढ़े-लिखे युवा अपराध के रास्ते पर जाने से पहले सौ बार सोंचे।

क्‍योंकि अक्सर देखा जाता है कि युवा मजबूरी के कारण नही बल्कि लग्जरी लाईफ जीने के लिए अपराध का रास्ता चुनते है। अपराध की सजा से अंजान अपराध कर जेल जाने वाले अपराधी को जेल में पहले से बन्द पेशेवर अपराधी से अलग रखा जाए, ताकि उनकी अपराधिक सोंच विस्तार न ले सके उन्हे अपराध पर पछतावा हो और जेल जाने पर शर्मिन्दगी हो।

देश की जेलो मे युवा अपराधियो की सोंच बदलने के लिए बाकायदा काउंसिलिंग होना चाहिए। जिस तरह से पुलिस अपराधियों के जेल से छूटने के बाद निगरानी करती है, अगर उसी तरह से नियमित तौर से युवा अपराधियो की काउंसिलिंग की जाए तो हालात बदल सकते है। जेल से छूटकर बाहर आने वाले अपराधियों मे सजा का डर होना चाहिए न कि ये डर हो कि उनके क्षेत्र मे अपराध कोई और करेगा और पुलिस परेशान उन्हे करेगी, क्‍योंकि अक्सर यही होता है कि क्षेत्र मे किसी बड़े अपराध होने के बाद सबसे पहले पुलिस उन्ही युवाओं से पूछताछ करती है जो पहले किसी अपराध के मामले मे जेल जा चुके होते हैं।

सरकार को चाहिए कि अपराधियो की कांउसिलिंग के लिए बजट का प्रावधान करें और जेल से छूटे अपराधी की नियमित तौर से काउंसिलिग हो साथ ही स्कूलो मे अपराध की सजाओ की जानकारी दी जाए हमे उम्मीद है कि अगर सरकार गंभीर हुई तो अपराध कम होंगे और देश के युवा बिना भटके हुए देश की तरक्की के लिए काम करेंगे।

समाज खुशहाली की तरफ निरंतर बढ़ता रहेगा। सरकार बदलेगी तो युवाओं की सोंच बदलेगी युवाओं की अपराधिक सोंच बदलेगी तो देश और समाज को तरक्की से कोई रोक नहीं सकता है।