आरयू वेब टीम। जम्मू-कश्मीर को पुनर्गठित करने के प्रस्ताव वाले विधेयक को राज्यसभा से मंजूरी मिल गई है। सोमवार को करीब आठ घंटें की चर्चा के बाद उच्च सदन ने इस विधेयक को पारित कर दिया। इस बिल के तहत लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया जाएगा और दोनों केंद्र शासित प्रदेश होंगे।
वहीं आज धारा 370 को लेकर गहमागहमी वाले माहौल के बीच विधेयक के पक्ष में 125, जबकि विपक्ष में 61 वोट पड़े। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में सामान्य वर्ग के गरीबों को दस प्रतिशत आरक्षण वाला विधेयक भी पास हो गया है। पुनर्गठन विधेयक को मंजूरी से पहले गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि आने वाले दिनों में यदि हालात सुधरते हैं तो सूबे को दोबारा पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जा सकता है।
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आज गृह मंत्री ने धारा 370 हटाने को लेकर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर में विकास का रास्ता यहीं से होकर जाता है। उन्होंने कहा कि मैं मानता हूं कि जम्मू-कश्मीर में लंबे रक्तपात का अंत आर्टिकल 370 समाप्त होने से होगा।
राज्यसभा में गृह मंत्री ने कहा कि आर्टिकल 370 बनाए रखने की वकालत करने वाला क्या कोई भी नेता इसके पक्ष में दलीलें दे सकता है। इससे जम्मू-कश्मीर और भारत को क्या लाभ है, यह बात कोई मुझे बता सकता है क्या? उन्होंने कहा, ‘1989 से 2018 तक राज्य के 41,849 लोगों की जान चली गई। यदि आर्टिकल 370 न होता तो उन लोगों की जानें न जातीं।’
साथ ही आज अमित शाह ने ये भी कहा कि विपक्ष की ओर से ऐतिहासिकता की बात की गई, लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि 370 से भारत और जम्मू-कश्मीर को क्या मिलने वाला था। आने वाले दिनों में यदि हालात सुधरते हैं तो सूबे को दोबारा पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जा सकता है।
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जम्मू-कश्मीर में गरीबी के लिए 370 को जिम्मेदार ठहराते हुए शाह ने कहा, ‘2004 से 2019 तक 2 लाख 77 हजार करोड़ रुपया प्रदेश को भेजा गया, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं दिखता है। 2011-12 में 3,687 करोड़ रुपया भेजा गया। हर आदमी के लिए 14,000 रुपया था, लेकिन कुछ न पहुंचा। इसी तरह 2017-18 में 27,000 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से दिया गया, लेकिन न जाने कहां रुपया चला गया।’
इस दौरान राम मनोहर लोहिया का जिक्र करते हुए अमित शाह ने कहा, ‘1964 में लोकसभा में एक चर्चा हुई। इसमें राम मनोहर लोहिया जी कहा कि जब तक आर्टिकल 370 है, तब तक भारत और जम्मू-कश्मीर का एकीकरण नहीं हो सकता। तब गुलजारी लाल नंदा ने इस बात को उचित समय आने पर फैसला लेने की बात कहकर टाल दिया।