आरयू वेब टीम।
देश की सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में 15 सौ सालों से महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को खत्म कर दिया है। अब सभी उम्र की महिलाएं मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी। अपनी और जस्टिस एएम खानविलकर की ओर से सीजेआइ दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ा।
सीजेआइ ने कहा, हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय और ग्लोरिफाइड है। साथ ही उन्होंने ये भी कहा, जस्टिस इंदु मल्होत्रा का फैसला शेष न्यायमूर्तियों से अलग है, इसलिए यह बहुमत का फैसला है। देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंगटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने इस मुद्दे पर फैसला सुनाया है कि सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश दिया जाए या नहीं।
गौरतलब है कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का मानना था कि देश में प्राइवेट मंदिर का कोई सिद्धांत नहीं है। यह सार्वजनिक संपत्ति है। इसमें यदि पुरुष को प्रवेश की इजाजत है तो फिर महिला को भी जाने की अनुमति मिलनी चाहिए। संविधान पीठ ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के खिलाफ याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए पूछा था कि क्या महिलाओं को उम्र के हिसाब से प्रवेश देना संविधान के मुताबिक है? सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अनुच्छेद 25 सभी वर्गों के लिए समान है। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि मंदिर किसी वर्ग विशेष के लिए खास नहीं होता, यह सबके लिए है।
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वहीं इस मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने त्रावणकोर देवासम बोर्ड से सवाल किया था कि इस बात को साबित किया जाए कि सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी धार्मिक विश्वास का एक अभिन्न हिस्सा है। मामले की आखिरी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महज माहवारी के कारण इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगा देना महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है।
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बता दें कि 1500 साल पहले से चली आ रही परंपरा के अनुसार महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। करीब 10 साल से यह मामला कोर्ट में चल रहा था। मंदिर से जुड़ी 1500 साल पुरानी परंपरा के अनुसार इसमें 10 साल से लेकर 50 साल की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था।
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