आरयू ब्यूरो,
नई दिल्ली। अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में भाजपा के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, फॉयर ब्रांड उमा भारती समेत 13 नेताओं की मुश्किलें आज सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ा दी है। इन तेरह नामों में विश्व हिन्दू परिषद के लोग भी शामिल है।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसलो को पलटते हुए इन पर आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने के आदेश दिए हैं। बुधवार को कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले को चार सप्ताह के भीतर रायबरेली से लखनऊ ट्रांसफर कर दिया जाएगा।
हालांकि, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह पर इस फैसले का असर नहीं होगा, क्योंकि वह वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल हैं और उन्हें आपराधिक मामलों से संवैधानिक छूट प्राप्त है। कोर्ट ने कहा है, ‘हम इस मामले में इंसाफ करना चाहते हैं।
एसी ने कहा यह एक ऐसा मामला जो 17 साल से सिर्फ तकनीकी गड़बड़ी की वजह से रुका है। इसके लिए हम संविधान के आर्टिकल 142 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करके आडवाणी, जोशी समेत सभी 13 नेताओं पर आपराधिक साजिश की धारा के तहत फिर से ट्रायल का आदेश दे सकते हैं। साथ ही मामले को रायबरेली से लखनऊ ट्रांसफर कर सकते हैं। 25 साल से लटके इस मामले को हम डे-टू-डे सुनवाई करके दो साल में खत्म कर सकते हैं।
13 नेताओं को आपराधिक साजिश रचने के आरोप से मुक्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महज टेक्निकल ग्राउंड पर इनको राहत नहीं दी जा सकती। इनके खिलाफ साजिश का ट्रायल चलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा था कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में दो अलग-अलग अदालतों में चल रही सुनवाई क्यों न एक ही जगह हो? कोर्ट ने पूछा था कि रायबरेली में चल रहे मामले की सुनवाई को क्यों न लखनऊ ट्रांसफर कर दिया जाए, जहां कारसेवकों से जुड़े एक मामले की सुनवाई पहले से ही चल रही है।
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि तकनीकी आधार पर इनके खिलाफ साजिश का केस रद्द किया गया था, जिसके बाद सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। लखनऊ में कार सेवकों के खिलाफ केस लंबित है, जबकि रायबरेली में भाजपा नेताओं के खिलाफ केस चल रहा है।
ये था मामला
वर्ष 1992, 6 दिसंबर को बाबरी मसजिद गिराने को लेकर दो मामले दर्ज किए गए थे। एक मामला (केस नंबर 197) कार सेवकों के खिलाफ था और दूसरा (केस नंबर 198) मंच पर मौजूद नेताओं के खिलाफ। केस नंबर 197 के लिए हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से इजाजत लेकर ट्रायल के लिए लखनऊ में दो स्पेशल कोर्ट का गठन किया गया, जबकि 198 का मामला रायबरेली में चलाया गया।
केस नंबर 197 की जांच का काम सीबीआइ को सौंपा गया और 198 की जांच यूपी सीआइडी ने की थी। केस नंबर 198 के तहत रायबरेली में चल रहे मामले में नेताओं पर धारा 120बी नहीं लगायी गयी थी। बाद में आपराधिक साजिश की धारा जोड़ने की कोर्ट में अर्जी लगायी, तो कोर्ट ने इसकी इजाजत दे दी।
सीबीआइ ने कहा था फिर से चलना चाहिए ट्रायल
सीबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि आडवाणी, उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व सीएम कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत 13 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का ट्रायल चलना चाहिए। रायबरेली के कोर्ट में चल रहे मामले का भी लखनऊ की स्पेशल कोर्ट के साथ ज्वाइंट ट्रायल होना चाहिए। सीबीआइ ने यह भी मांग की कि इलाहाबाद हाइकोर्ट के साजिश की धारा को हटाने के फैसले को रद्द कर दिया जाए।
आडवाणी ने नही चाहते थे दोबारा शुरू हो सुनवाई
लाल कृष्ण आडवाणी ने बाबरी मसजिद विध्वंस मामले की दोबारा सुनवाई करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि इस मामले में 183 गवाहों को फिर से बुलाना पड़ेगा, जो काफी मुश्किल है। कोर्ट को साजिश के मामले की दोबारा सुनवाई के आदेश नहीं देने चाहिए।