सुप्रीम कोर्ट से जल्लीकट्टू को मंजूरी, कहा सांस्कृतिक परंपरा व धर्म का हिस्सा तय करना विधायिका का काम

जल्लीकट्टू
फाइल फोटो।

आरयू वेब टीम। तमिलनाडु में सांडों को वश में करने वाले खेल ‘जल्लीकट्टू’ और महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़ को चुनौती देनी वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय आज गुरुवार को अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने  जल्लीकट्टू को इजाजत दे दी है। कोर्ट ने कहा कि ये तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है या नहीं,  यह तय करना कोर्ट का काम नहीं है। जब विधायिका ने घोषणा की है कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, तो न्यायपालिका अलग दृष्टिकोण नहीं रख सकती है।

जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की पांच जजों की संविधान पीठ फैसला सुनाते हुए कहा कि विधायिका यह तय करने के लिए सबसे उपयुक्त है, बेंच ने नागराज में 2014 के फैसले से असहमति जताई कि जल्लीकट्टू सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा नहीं है।

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ये मामला लंबित था, लेकिन इसी दौरान तमिलनाडु में पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (संशोधन) अधिनियम, 2017 पारित किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने आठ दिसंबर 2022 को  तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जलीकट्टू कंबाला और बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति देने वाले कानूनों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था।

पीठ ने सभी पक्षों से एक सप्ताह के भीतर लिखित अभिवेदन का सामूहिक संकलन दाखिल करने के लिए कहा। शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि पशु क्रूरता रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक बड़ी पीठ द्वारा निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि इनमें संविधान की व्याख्या से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं।

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