आरयू वेब टीम।
सुप्रीम कोर्ट ने आज ‘इच्छा मृत्यु’ मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने इस पर फैसला सुनाते हुए कुछ दिशा-निर्देशों के साथ ‘इच्छा मृत्यु’ की इजाजत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते कहा कि हर व्यक्ति को गरिमा के साथ मरने का अधिकार है और किसी भी इंसान को इससे वंचित नहीं किया जा सकता।
साथ ही उच्चतम न्यायालय ने इच्छा मृत्यु के लिए एक गाइडलाइन भी जारी की है, जो कि कानून बनने तक प्रभावी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि ‘इच्छा मृत्यु’ की मांग करने वाले शख्स के परिवार की अर्जी पर लिविंग विल को मंजूर किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए एक्सपर्ट डॉक्टर्स की टीम को भी यह लिखकर देना होगा कि बीमारी से ग्रस्त शख्स का स्वस्थ होना असंभव है।
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चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में पांच जजों की संवैधनिक पीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जजों की पीठ ने पिछले साल 11 अक्टूबर को इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जिस तरह नागरिकों को जीने का अधिकार दिया गया है, उसी तरह उन्हें मरने का भी अधिकार है।
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बता दें कि ‘लिविंग विल’ एक लिखित दस्तावेज होता है, जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए। ‘पैसिव यूथेनेशिया’ (इच्छा मृत्यु) वह स्थिति है जिसमें किसी मरणासन्न व्यक्ति को मौत की तरफ बढ़ाने की मंशा से उसे इलाज देना बंद कर दिया जाता है।
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