आरयू वेब टीम। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कच्चातिवु को लेकर सामने आई एक आरटीआई रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस और विपक्षी दलों पर जोरदार हमला बोला है। पीएम ने विरोधियों को घेरते हुए कहा है कि नए तथ्यों से पता चलता है कि कांग्रेस ने किस तरह बेरहमी से कच्चातिवु को छोड़ दिया। इसने हर भारतीय को नाराज कर दिया है। भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 सालों से काम करने का तरीका रहा है।
पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर रिपोर्ट पोस्ट कर कहा, ‘आंखें खोलने और चौंकाने वाला सच सामने आया है। नए तथ्यों से पता चलता है कि कांग्रेस ने किस तरह बेरहमी से कच्चातिवु को छोड़ दिया। इसने हर भारतीय को नाराज कर दिया है। हम कांग्रेस पर कभी भरोसा नहीं कर सकते। भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 सालों से काम करने का तरीका रहा है।’
दरअसल तमिलनाडु भाजपा प्रमुख के अन्नामलाई ने आरटीआइ दायर कर कच्चातिवु के बारे में पूछा था। अब आरटीआई सामने आने पर पता चला है कि सन् 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके ने एक समझौता किया था। इसके तहत कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को औपचारिक रूप से सौंप दिया गया था। बताया गया है कि इंदिरा गांधी ने तमिलनाडु में लोकसभा अभियान को देखते हुए यह समझौता किया था। संसद के आधिकारिक दस्तावेजों और रिकॉर्ड से पता चलता है कि किस तरह अस्थिर भारत पाक जलडमरूमध्य में द्वीप पर नियंत्रण की लड़ाई एक छोटे देश से हार गया, जो इसे छीनने के लिए प्रतिबद्ध था।
इतना ही नहीं रिपोर्ट में इस मुद्दे पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की टिप्पणियों का भी हवाला दिया गया है। बताया गया है कि नेहरू ने कहा था कि उन्हें द्वीप पर दावा छोड़ने में कोई संकोच नहीं होगा। उन्होंने कहा था, ‘मैं इस छोटे से द्वीप को कोई महत्व नहीं देता हूं और मुझे इसके लिए अपने दावों को छोड़ने में कोई संकोच नहीं होगा।’ नेहरू ने लिखा था कि मुझे यह पसंद नहीं है कि यह अनिश्चित काल के लिए लंबित रहे और संसद में इस मुद्दे को फिर से उठाया जाए।
बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता द्वीप
कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में एक छोटा सा द्वीप है, जो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। 285 एकड़ हरित क्षेत्र 1976 तक भारत का था। हालांकि, श्रीलंका और भारत के बीच एक विवादित क्षेत्र है, जिस पर आज श्रीलंका हक जताता है। दरअसल, साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने समकक्ष श्रीलंकाई राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ 1974-76 के बीच चार समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। इन्हीं समझौते के तहत कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया।
कच्चातिवू द्वीप का इतिहास
कच्चातिवू द्वीप का निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था। यह कभी 17वीं शताब्दी में मदुरई के राजा रामानद के अधीन था। ब्रिटिश शासनकाल में यह द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आया। 1921 में श्रीलंका और भारत दोनों ने मछली पकड़ने के लिए भूमि पर दावा किया और विवाद अनसुलझा रहा। आजादी के बाद इसे भारत का हिस्सा माना गया।
यह द्वीप सामरिक महत्व का था और इसका उपयोग मछुआरे करते थे। हालांकि इस द्वीप पर श्रीलंका लगातार दावा जताता रहा। यह मुद्दा तब उभरा जब भारत-श्रीलंका ने समुद्री सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए। साल 1974 में 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच इस द्वीप के बारे में बातचीत हुई। इन्हीं दो बैठकों में कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया। तब शर्त यह रखी गई कि भारतीय मछुआरे अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे और द्वीप में बने चर्च में भारत के लोगों को बिना वीजा के जाने की अनुमति होगी। समझौतों ने भारत और श्रीलंका की अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा चिह्नित कर दी।