आरयू वेब टीम। प्रयागराज में हिंसा करने वालों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार से तीन दिनों के अंदर जवाब देने का निर्देश दिया है, हालांकि कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि पिछले सप्ताह राज्य में हुई हिंसा के आरोपितों के घरों को अवैध रूप से गिराया गया है।
न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि नागरिकों में यह भावना होनी चाहिए कि देश में कानून का शासन है। मामले में अगली सुनवाई मंगलवार को होगी। पीठ ने कहा, ”सबकुछ निष्पक्ष होना चाहिये। हम अधिकारियों से कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने की आशा करते हैं।”
सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और कानपुर व प्रयागराज नगर अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किया गया है और एक मामले में तो अगस्त 2020 में विध्वंस का नोटिस दिया गया था। साथ ही कहा कि कोई भी पीड़ित पक्ष कोर्ट के समक्ष पेश नहीं हुआ है, बल्कि एक मुस्लिम निकाय जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कोर्ट का रुख करके यह आदेश देने की अपील की है कि विध्वंस नहीं होना चाहिए।
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जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं सी.यू सिंह, हुजेफा अहमदी और नित्य राम कृष्णन ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे अधिकारियों की तरफ से बयान जारी किए जा रहे हैं। कथित दंगा आरोपितों को घर खाली करने का मौका दिये बगैर विध्वंस की कार्रवाई की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट जमीयत उलेमा-ए-हिं की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को यह निर्देश देने की अपील की गई है कि राज्य में हाल में हुई हिंसा के कथित आरोपियों की संपत्तियों को न ढहाया जाए।