आरयू ब्यूरो
नई दिल्ली। नोटबंदी के बाद से जनता की परेशानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही। लोग आज भी पैसा लेने के लिए बैंकों और एटीएम के बाहर लाइन लगाए है। जबकि कई जगाहों पर नो कैश का बोर्ड लगा दिया गया है।
ग्रामीण इलाकों में सबसे ज्यादा कैश की किल्लत देखी जा रही है। अधिकत्तर ग्रामीण सहकारी बैंकों पर ही निर्भर हैं। इन्हीं सब के बीच आज देश की सबसे बड़ी कोर्ट ने मोदी सरकार से जानना चाहा कि आखिर ग्रामीणों की परेशानी के लिए वह क्या कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने अर्टार्नी जनरल से सवाल किया कि गांव के लोगों को दिक्कत हो रही है। उससे निपटने के लिए क्या किया जा रहा।
केन्द्र सरकार की पैरवी करने वाले अर्टार्नी जनरल ने दलील दी कि सरकारी सहकारी बैंकों के वर्तमान हालात के बारे में पूरी तरह से परीचित है। सहकारी बैंकों में सरकारी बैंकों के मुकाबले सुविधाएं नहीं होती। उनके पास फर्जी नोटों की पहचान के लिए विशेषज्ञ भी नहीं होते। यही वजह हैं कि सरकार ने इस पूरे ड्राइव में सहकारी बैंकों को सरकारी बैंकों से अलग रखा है।
दूसरी ओर सहकारी बैंकों के सीनियर एडवोकेट पी चिदंबरम ने सरकार के फैसलों पर सवाल उठाया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि नोटबंदी के बाद किस तरह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। गांव के लोग और अन्नदाता कहे जाने वाले किसान नकदी के किल्लत की वजह से बहुत ज्यादा परेशान हैं।