आरयू वेब टीम। पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष ने गुरुवार को नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी समेत भारतीय जनता पार्टी के सात विधायकों का निलंबन वापस ले लिया। विधानसभा में 28 मार्च को सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के विधायक भिड़ गए थे, जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने पांच विधायकों को निलंबित कर दिया था। इससे पहले सदन में राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान भाजपा के दो विधायकों को उनके आचरण के चलते निलंबित कर दिया गया था।
दोपहर बाद विधानसभा की कार्यवाही शुरु होते ही विधानसभा अध्यक्ष ने भाजपा विधायक अग्निमित्रा पॉल से प्रस्ताव की अंतिम दो पंक्तियां पढ़ने के लिये कहा, जिसमें अधिकारी और चार अन्य विधायकों मनोज तिग्गा, नरहरि महतो, मिहिर गोस्वामी और शंकर घोष के खिलाफ निलंबन आदेश वापस लेने का अनुरोध किया गया था।
इसके बाद बनर्जी ने संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी से विचार-विमर्श किया और उन्होंने भी विधायकों का निलंबन वापस लेने की बात कही। भाजपा की एक और विधायक शिखा चटर्जी ने सदन में दूसरा प्रस्ताव पढ़ा, जिसमें विधायक मिहिर गोस्वामी और सुदीप मुखोपाध्याय का निलंबन वापस लेने का अनुरोध किया गया था।
वहीं मंगलवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष बिमान बंदोपाध्याय ने कहा था कि उन्हें बीजेपी के सात विधायकों के निलंबन को रद्द करने के लिए पार्टी की ओर से कोई नया प्रस्ताव नहीं मिला है, क्योंकि पार्टी द्वारा सौंपे गए पिछले प्रस्ताव में कुछ ‘‘तकनीकी खामियां’’ थीं।
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दरअसल, 28 मार्च को विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भाजपा विधायकों के बीच झड़प हो गई थी, जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने अधिकारी और चार अन्य विधायकों को निलंबित कर दिया था। इस मामले में शुभेंदु अधिकारी ने कहा था कि, बीरभूम हिंसा मामले को लेकर विधानसभा के अंदर हंगामा हुआ। विपक्ष ने कम से कम अंतिम दिन कानून-व्यवस्था पर चर्चा की मांग की, सरकार ने मना कर दिया।
तृणमूल कांग्रेस के सदस्य हमारे आठ-दस विधायकों के साथ संघर्ष करने के लिए कोलकाता पुलिस कर्मियों को सिविल ड्रेस में सदन के अंदर लेकर लाए और हमारे साथ हिंसा की गई। बीरभूम हिंसा को लेकर बीजेपी ने राज्य सरकार का कड़ा विरोध किया था और सीएम ममता बनर्जी से इस्तीफा मांगा था। वहीं मार्च की शुरुआत में सदन में राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान गलत आचरण के लिए गोस्वामी और घोष को निलंबित कर दिया गया था।
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