आरयू ब्यूरो, लखनऊ। देश में महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे जरूरी मुद्दे भले ही परवान नहीं चढ़ रहें, लेकिन ऐसे में कॉमन सिविल कोड को लेकर नई बहस राजनीतिक दलों में तेज होती जा रही है। आज यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या द्वारा कॉमन सिविल कोड लागू किए जाने को लेकर दिए गए बयान को लेकर कांग्रेस ने भी डिप्टी सीएम को जवाब देते हुए तंज कसा है। कांग्रेस ने कहा है कि उत्तर प्रदेश व देश को इस समय कॉमन सिविल कोड से ज्यादा कॉमन क्रिमिनल कोड कि जरूरत है। ताकि कोई भी सरकार चाहकर भी अपनी पार्टी से जुड़े अपराधियों को बचा न सके और लोगों में संदेश जाए कि कानून कि नजर में सभी अपराधी समान हैं।
शनिवार को यूपी अल्पसंख्यक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने एक बयान में अपना तर्क दिया है कि अगर कॉमन क्रिमिनल कोड होता तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने ऊपर लगे गंभीर धाराओं के मुकदमों में खुद को ही निर्दोष बता अपने मुकदमे खत्म नहीं कर पाते। इन धाराओं के अन्य आरोपितों की तरह वो भी जेल में होते।
इसी तरह कॉमन सिविल कोड की जरूरत बताने वाले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या भी जिन पर दुर्गा पूजा की फर्जी रसीद छपवा कर चंदा इकट्ठा करने के आरोप में धारा 420, 467 और 468 के तहत मुकदमे दर्ज हैं, जेल में होते। जिस तरह जालसाजी के अन्य आरोपी विभिन्न जेल में बंद हैं। या फिर फर्जी मार्कशीट लगाकर चुनाव लड़ने और पेट्रोल पंप लेने वाले मुकदमे में ही जेल जा चुके होते जो खुद भाजपा के ही वरिष्ठ नेता दिवाकर त्रिपाठी ने इलाहाबाद में दर्ज कराया है।
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कांग्रेस नेता ने आगे कहा है कि तकनीकी तौर पर राज्य सरकार कॉमन सिविल कोड नहीं बना सकती। इसीलिये किसी भी राज्य में यह नहीं है। जिस गोवा का उदाहरण मीडिया में सरकार के लोग दे रहे हैं उसे पूर्तगाल सिविल कोड कहते हैं और वो 1867 से यानी 1961 में गोवा के भारत का हिस्सा बनने से पहले से लागू है।
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मोदी सरकार अगर कॉमन सिविल कोड लाना ही चाहती है तो उसके प्रावधानों पर पहले सार्वजनिक चर्चा कराये, ताकि लोग जान सकें कि इसमें क्या है, लेकिन सरकार इस पर चर्चा नहीं कराना चाहती, क्योंकि इसका सबसे ज्यादा विरोध खुद बहुसंख्यक समुदाय ही करेगा, क्योंकि सबसे अधिक सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता उसी समुदाय में है।