आरयू ब्यूरो, लखनऊ। माफिया व पूर्व सांसद अतीक अहमद के बेटे असद अहमद व उसके साथी गुलाम के एनकाउंटर को लेकर लगातार विपक्ष सवाल उठा रहा है। कोई इस एनकाउंटर को फर्जी कह रहा तो कोई योगी सरकार द्वारा एक वर्ग को निशाना बना दूसरे वर्ग को खुश करने की इसे राजनीत बता रहा है। ऐसे में यूपी के पूर्व ईमानदार आइपीएस अफसरों में शुमार अमिताभ ठाकुर ने एसटीएफ की मुठभेड़ पर एक-दो नहीं बल्कि एक दर्जन सवाल उठाते हुए इसकी शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से भी की है।
अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने एसटीएफ के डिप्टी एसपी नवेंदु कुमार झांसी के बड़गांव थाने में दर्ज कराई गई एफआइआर और एसटीएफ द्वारा इस संबंध में जारी किए गए मौके के विभिन्न फोटोग्राफ के आधार पर ही 12 सवाल उठाएं हैं। अमिताभ ने कहा है कि यह सारे बिंदु इस कथित एनकाउंटर की सत्यता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
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इन बिंदुओं में एसटीएफ द्वारा एफआईआर में मौके पर असद और गुलाम के जिंदा रहने के दावे, मौके पर इन दोनों के शरीर की पोजीशन, खुद घटनास्थल की स्थिति, घटनास्थल पर मिली बाइक व मृतकों द्वारा पिस्टल पकड़ने की स्थिति व अन्य के आधार पर उठाए गए सवाल शामिल हैं।
अमिताभ ठाकुर ने अपनी शिकायत में तर्क देते कहा है कि यह विधि का स्थापित सिद्धांत है कि राज्य या किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति को मारने का अधिकार नहीं है और किसी भी व्यक्ति की जान सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार ही ली जा सकती है। किसी व्यक्ति के दुर्दांत अपराधी होने के नाम पर उसकी हत्या नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि अगर ऐसी स्थिति पर अंकुश नहीं लगाया गया तो व्यवस्था पूरी तरह अराजक हो जाएगी।
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अमिताभ ठाकुर के सवाल-
- एफआइआर में दावा किया गया है कि जब मुठभेड़ खत्म हुई तो असद और गुलाम मोहम्मद जिंदा थे। इसके विपरीत एसटीएफ द्वारा प्रसारित किए गए फोटो में असद और गुलाम किसी भी तरह जिंदा नहीं लग रहे। फोटो से साफ लगता है कि मौके पर असद और गुलाम मोहम्मद की मौत हो चुकी थी और वह फोटो मृत व्यक्तियों के थे, न कि दर्द से कराह रहे व्यक्तियों के, जैसा कि एफआइआर में दावा किया गया है। इससे एफआइआर में मुठभेड़ खत्म होने के बाद असद और गुलाम मोहम्मद के जीवित होने और उन्हें एंबुलेंस से अस्पताल भेजे जाने का दावा झूठा दिखता है।
- इसी प्रकार असद से जुड़े एक फोटो में उसे जिस पोजीशन में दिखाया गया है, उसमें वह मोटर साइकिल की हैंडल के नीचे पड़ा है। यह किसी भी स्थिति में संभव नहीं है कि कोई गिरने के बाद पहले से गिरी बाइक के हैंडल के नीचे आ जाए। इसके उलट अगर वह मोटरसाइकिल पर गिरेगा तो उसका शरीर बाइक के ऊपर होगा, न कि हैंडल के नीचे। अतः हैंडल के नीचे जिस प्रकार असद का शरीर दिखाया गया, वह साफ तौर पर शक पैदा करता है।
- इसी फोटो में असद के हाथ में जिस प्रकार से बंद मुट्ठी में पिस्टल दिखाया गया है, वह प्रथम दृष्ट्या मेडिको लीगल सिद्धांत से सही नहीं जान पड़ता, क्योंकि मेडिको लीगल सिद्धांत के अनुसार घायल होते ही उसके हाथ से पिस्टल गिर जाती।
- एसटीएफ की एक फोटो में असद के ठीक बगल में एक खाली पिस्टल दिख रही और एक छाया दिख रही है, जो स्पष्ट नहीं हो रही है कि किसकी छाया है। यह छाया भी घटना के असली होने पर सवाल खड़े कर रही।
- एक दूसरे फोटोग्राफ, जिसमे असद के ठीक बगल में गुलाम मोहम्मद दिख रहा उसमें वह पिस्टल नहीं दिख रही। इससे ऐसा लगता है कि मौके को बनाने के लिए अलग-अलग तरह से प्रयास किए गए हैं और इस दौरान एसटीएफ के लोगों द्वारा लगातार फोटोग्राफी की गई है।
- इसी प्रकार से गुलाम मोहम्मद भी फोटो में हाथ में जिस प्रकार से पिस्टल पकड़े दिख रहा, वह मेडिको लीगल सिद्धांत के अनुसार संभव नहीं है।
- गुलाम मोहम्मद के चप्पल की पोजीशन भी अलग-अलग फोटो में अलग-अलग दिख रही, जो भी इस पूरे घटनाक्रम को संदिग्ध बना रही।
- मुकदमें में डिप्टी एसपी नवेंदु कुमार ने दावा किया है कि मोटरसाइकिल फिसलकर बबूल के झाड़ में गिर पड़ी, जिसके बाद दोनों ने जमीनी आड़ लेकर फायरिंग शुरू की। इसके विपरीत मौके की स्थिति से साफ दिखता है कि कथित घटनास्थल कच्ची सड़क के बगल में है। कच्ची सड़क ऊपर है और घटनास्थल नीचे। घटनास्थल बिल्कुल खुला स्थान है जहां कोई भी आड़ नहीं है। स्पष्ट है कि वहां से कोई आड़ लेकर फायरिंग नहीं की जा सकती थी। इसके विपरीत पुलिस वाले एक सुरक्षित पोजीशन में थे। इस प्रकार एफआइआर की यह बात भी सही नहीं जान पड़ती है।
- घटनास्थल की फोटोग्राफ में कहीं भी स्लीप करने या फिसलन के कोई निशान नहीं है, जो मोटरसाइकिल फिसलने के दावे को गलत साबित करता है।
- मोटरसाइकिल के टायर बिल्कुल साफ है और उस पर किसी भी प्रकार के धूल आदि के निशान नहीं हैं।
- एफआइआर के अनुसार मुठभेड़ 12:55 बजे दिन में समाप्त हो गई थी, किंतु नरेंद्र कुमार द्वारा एफआइआर रात में 11:55 बजे अर्थात मुठभेड़ खत्म होने के 11 घंटे बाद कराई गई, जो अपने आप में संदेह का एक कारण है।
- न्यूज़ चैनलों ने लगभग एक बजे दिन में इन बदमाशों के मारे जाने की खबर प्रसारित की, जबकि एफआइआर के अनुसार उस समय तक दोनों बदमाश जीवित थे और उन्हें अस्पताल भेजा जा रहा था। यह बात भी इस घटना की सत्यता पर शक पैदा करती है।