आरयू वेब टीम। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मणिपुर हिंसा से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हुए तल्ख टिप्पणी कर कहा कि “शीर्ष अदालत के मंच का इस्तेमाल मणिपुर में हिंसा को और बढ़ाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।” सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसा जनहित याचिकाओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “हम केवल राज्य द्वारा उठाए जा रहे कदमों की निगरानी कर सकते हैं और यदि अतिरिक्त उपाय किए जा सकते हैं तो कुछ आदेश पारित कर सकते हैं, लेकिन हम सुरक्षा तंत्र नहीं चला सकते हैं।”
दरअसल मणिपुर सरकार ने स्थिति पर नई स्थिति रिपोर्ट सौंपी है, जबकि इस पर सुनवाई मंगलवार को फिर से शुरू होगी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि “याचिकाकर्ता इस मामले को पूरी संवेदनशीलता के साथ उठा सकते हैं, क्योंकि किसी भी गलत सूचना से स्थिति बिगड़ सकती है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने कहा कि मणिपुर की स्थिति में गंभीर वृद्धि हुई है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि “ठोस सुझाव के साथ यहां आएं।”
सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि “आपका संदेह हमें कानून-व्यवस्था संभालने के लिए प्रेरित नहीं कर सकता है।” जैसा कि गोंसाल्वेस ने तर्क दिया कि कथा मणिपुर में आदिवासियों के खिलाफ है। सीजेआइ ने कहा कि “हम नहीं चाहते कि इस कार्यवाही को राज्य में मौजूद हिंसा और अन्य समस्याओं को और बढ़ाने के लिए एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया जाए। हम नहीं चलाते सुरक्षा तंत्र या कानून-व्यवस्था”, यदि आपके पास सुझाव हैं तो हम ले सकते हैं।”
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सीजेआइ ने कहा कि “आइए इसे पक्षपातपूर्ण मामले के रूप में न देखें। यह एक मानवीय मुद्दा है।” आगे उन्होंने ने कहा कि “हम आपकी भावनाओं को समझते हैं, लेकिन इस न्यायालय के समक्ष बहस करने के कुछ तौर-तरीके होने चाहिए।”
बता दें कि मणिपुर में जातीय समूहों के बीच संघर्ष के कारण पिछले दो महीनों से स्थिति तनावपूर्ण है। सोमवार को मणिपुर के वेसर कांगपोकपी इलाके में रात भर हुई झड़प में एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई और दस अन्य घायल हो गए। अशांति का दौर तीन मई को शुरू हुआ था।