आरयू ब्यूरो, लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम आदेश में कहा कि बिना आधार कार्ड और मोबाइल फोन वालों को भी वृद्धावस्था पेंशन दें। बैंक खाता रिकॉर्ड से सत्यापन के बाद पात्रता सही मिलने पर पेंशन का भुगतान किया जाए। मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति एआर मसूदी की खंडपीठ ने यह आदेश उन्नाव की मोहाना और अन्य वृद्ध लोगों की पिछले साल दायर जनहित याचिका पर दिया।
कोर्ट ने याचियों से कहा कि वे 29 फरवरी को उन्नाव के जिला समाज कल्याण अधिकारी के समक्ष अपनी बैंक पासबुक व अन्य दस्तावेजों के साथ पेश हों, जिससे पता चले कि कथित रूप से पेंशन रोकने से पहले उन्हें पेंशन मिल रही थी। कोर्ट ने कहा कि समाज कल्याण अधिकारी सत्यापन के बाद संतुष्ट होने पर अगर पाएं कि उन्हें पेंशन नहीं मिल रही है तो उन्हें इसका भुगतान करें। याचियों से आधार कार्ड और मोबाइल फोन नंबर पेश करने के लिए नहीं कहा जाए।
दरअसल, याचियों ने जनहित याचिका में कहा था कि आर्थिक वजहों से वे मोबाइल फोन नहीं रखते हैं। वृद्धावस्था के कारण हाथ के अंगूठे व अंगुलियों पर निशान भी नहीं बचे हैं। इसलिए उनका आधार कार्ड नहीं बन सकता है। इन दोनों वजहों से उन्हें वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिल पा रही है। उन्होंने कोर्ट से पेंशन दिलाने का अनुरोध किया है। याचियों के वकील ने कोर्ट में कहा कि अन्य तरीकों से भी सत्यापन कर उनको पेंशन दी जा सकती है, क्योंकि याचिका लंबित रहने के दौरान कई वृद्ध याचियों की मृत्यु हो चुकी है।
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इसका विरोध करते हुए सरकारी वकील ने कहा कि याचिका में ऐसा कुछ दाखिल नहीं किया गया, जिससे पता चले कि उन्हें पहले पेंशन मिलती थी, जो बाद में बंद हो गई। सरकारी वकील ने इस अनुरोध का विरोध नहीं किया कि याचियों की बैंक खाता रिकॉर्ड से उनकी मौजूदगी व पहचान का सत्यापन किया जा सकता है। कोर्ट ने समाज कल्याण अधिकारी को याचियों के सत्यापन और कार्रवाई की रिपोर्ट अगली सुनवाई पर 12 मार्च को पेश करने का आदेश दिया।