आरयू वेब टीम।
दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है। भारतीय राजनीत के लिए एक अहम फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट के आधार पर जनप्रतिनिधियों पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है। चुनाव लड़ने से रोकने के लिए सिर्फ चार्जशीट ही काफी नहीं है।
हालांकि उच्चतम न्यायलय ने गाइडलाइंस जारी करते हुए कहा कि राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों के बारे में कम से कम तीन बार प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए उनके आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी दें।
आज देश की सबसे बड़ी अदालत ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह, एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय और गैर-सरकारी संस्था (एनजीओ) पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर ये फैसला दिया है।
हालांकि आज सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के आपराधिकरण को बेहद गंभीर और खतरनाक बताते हुए संसद को इसके लिए कानून बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है। कोर्ट ने कहा कि राजनीति में पारदर्शिता बड़ी चीज है, ऐसे में राजनेताओं को अपराध में शामिल होने से बचना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आज ये भी कहा कि अब समय आ गया है कि कानून बनाकर संसद ऐसे लोगों को राजनीत में आने से रोके जिनके खिलाफ आपराधिक मामले चल रहें हो। इसके अलावा पैसा, बाहुबल को राजनीति से दूर रखना संसद का कर्तव्य है और राजनीतिक अपराध लोकतंत्र की राह में बाधा है।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा समेत पांच जजों की पीठ मौजूद रही। जिसमें जस्टिस आरएफ नारिमन, जस्टिस एएम खान्विलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूण और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल थे।
इसके अलावा उच्चत न्यायलय आज एक और महत्वपूर्ण बात इस संबंध में कही है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आम जनता को अपने नेताओं के बारे में पूरी जानकारी होना जरूरी है। हर नेता को अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग को देनी चाहिए। इसके अलावा सभी पार्टियों को अपने उम्मीदवारों की जानकारी अपनी वेबसाइट पर डालनी होंगी। साथ ही राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों के नामांकन के बाद कम से कम तीन बार प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए उनके आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में बताएं।
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बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी याचिका में मांग की गई थी कि अगर किसी व्यक्ति को गंभीर अपराधों में पांच साल से ज्यादा सजा हो और किसी के खिलाफ आरोप तय हो जाएं तो ऐसे व्यक्ति या नेता के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए। इसके अलावा अगर किसी सासंद या विधायक पर आरोप तय हो जाते हैं तो उनकी सदस्यता रद्द होनी चाहिए।
जिसकी सुनवाई करते हुए मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच जजों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था। याचिका में कहा गया कि इस समय देश में 33 प्रतिशत नेता ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराध के मामले में कोर्ट आरोप तय कर चुका है।
वहीं पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपनी दलील में कहा था कि ज्यादातर मामलों में आरोपित नेता बरी हो जाते हैं, इसलिए सदस्यता रद्द करने जैसा कोई आदेश न दिया जाए।
एक आंकड़े के अनुसार आपको बताते चलें कि 1518 नेताओं पर केस दर्ज हैं, जिसमें 98 सांसद हैं। नेताओं पर 35 पर बलात्कार, हत्या और अपहरण के मुकदमे हैं। महाराष्ट्र के 65, बिहार के 62, पश्चिम बंगाल के 52 नेताओं पर केस दर्ज हैं।