आरयू ब्यूरो, लखनऊ। उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में तैनात आर्थिक तंगी से परेशान अनुदेशक काफी समय से नियमितीकरण, समान कार्य, समान वेतन जैसी मांगें उठा रहें हैं। अनदेखी से नाराज अनुदेशकों का सब्र आज जवाब दे दिया। जिसके बाद अनुदेशकों ने मंगलवार को बेसिक शिक्षा निदेशालय का घेराव कर अपना दर्द नौ हजार में दम नहीं, नियमितीकरण से कम नहीं जैसे नारे के माध्यम से अफसरों के सामने रखा।
अनुदेशकों का कहना है कि उन्हें मात्र नौ हजार रुपए मिलने के चलते अपनी रोजी-रोटी और मूलभूत सुविधाओं तक के लिए भी जद्दोजहद करना पड़ रहा है। इस दौरान भारी संख्या में अनुदेशकों की मौजूदगी की वजह से प्रशासनिक अफसर अनुदेशकों को समझाने लगे।
वहीं अनुदेशकों का आरोप है कि भाजपा ने सत्ता में आने से पहले कई बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन सत्ता मिलते ही सब भूल गए। वे सरकार की तरफ से दिए गए हर काम को करते हैं। कार्यों की बात करें तो जनगणना, घर-घर जाकर छात्रों को लाना समेत तमाम काम शामिल हैं।
प्रदर्शनकारियों का कहना था कि कुल मिलाकर हम लोग पर्मानेंट शिक्षकों की तरह काम को करते हैं, लेकिन हमे उनसे बेहद कम वेतन मिलता है। अगर दोनों बराबर काम कर रहे हैं तो उन्हें वेतन भी समान मिलना चाहिए।
इतना ही नहीं महिला अनुदेशकों का कहना है कि न तो उन्हें कोई मेटरनिटी लीव मिलकी और न को मेडिकल सुविधाएं। अगर कुछ अवश्यक काम हो तो उन्हें अपनी सैलरी कटवाकर छुट्टी पर जाना पड़ता है। अनुदेशकों का कहना है कि उन्हें अपना घर चलाने के लिए भी सोचना पड़ता है। महंगाई इतनी है ऐसे में नौ हजार में क्या होता है।
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महिला अनुदेशकों ने अपना दर्द बयान करते हुए कहा कि कई बार उन्हें बीमारी में स्कूल आना पड़ता है क्योंकि उनके पास छुट्टी नहीं होती हैं, और अगर कोई प्रेग्नेंट है तो उसे मेटर्निटी लीव नहीं मिलती, क्योंकि वे अनुदेशक शिक्षक हैं।
शिक्षा अधिकार अधिनियम से नियुक्त अनुदेशक जुलाई 2013 से पुर्ण कालिक कार्य करते हुए नौनिहालों का भविष्य संवार रहे हैं। अधिसंख्य अनुदेशकों की उम्र सीमा 40 वर्ष पार कर चुकी है। रोजीरोटी का अब कोई विकल्प नहीं है। अतः नवीन शिक्षा नीति के अनुसार हम अनुदेशकों को नियमित किया जाए।
ये थीं प्रमुख मांगें-
नियमितीकरण होने तक तत्काल प्रभाव से 12 माह के लिए समान कार्य, समान वेतन की व्यवस्था लागू की जाए।
सरकार द्वारा हम अनुदेशकों के विरुद्ध अदालतों में चलाई जा रही समस्त कार्यवाही अविलंब वापस लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय व माननीय उच्च न्यायालय डबल बेंच में पारित निर्णय एवं दिशानिर्देर्शों को तत्काल प्रभाव से निष्पादिल किया जाए।
नवीनीकरण के नाम पर हम अनुदेशकों का अमानवीय शोषण किया जाता है। शोषण के कुकृत्य ऐसे हैं जिसे सिर्फ संवेदनशील सरकार ही समझ सकती है। अतः स्वतः नवीनीकरण व्यवस्था लागू करने समेत रखी कई मांगे।