आरयू वेब टीम। देश के साथ ही दुनिया भर की सुर्खियों में छाए अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में आखिरी दिन यानि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गयी है। सुनवाई शाम पांच की जगह करीब एक घंटा पहले चार बजे ही पूरी हुई। पीठ ने अयोध्या भूमि विवाद मामले में संबंधित पक्षों को ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ (राहत में बदलाव) के मुद्दे पर लिखित दलील दाखिल करने के लिये तीन दिन का समय दिया।
इससे पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआइ) रंजन गोगोई ने मंगलवार को इस बात का संकेत दिया था कि बुधवार को अयोध्या मामले की सुनवाई का आखिरी दिन होगा। वहीं आज सुबह ही सीजेआइ ने सुनवाई के 40वें दिन एक बार फिर स्पष्ट कर दिया था कि शाम पांच बजे तक ही इस मामले को सुना जाएगा। उन्होंने कहा था कि अब बहुत हो गया, सुनवाई आज शाम पांच बजे तक खत्म हो जाएगी। हालांकि ये चार बजे ही समाप्त हुई।
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सुनवाई पूरी होने के बाद हिंदू महासभा के वकील ने वरुण सिन्हा ने मीडिया को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि 23 दिनों के भीतर इस केस में निर्णय आ जाएगा।
सुनवाई के दौरान अखिल भारतीय हिंदू महासभा के वकील की दलील पर सीजेआइ ने कहा कि अगर इस तरह के तर्क चल रहे हैं, तो हम अभी उठ सकते हैं, और बाहर निकल सकते हैं। वहीं अधिवक्ता बोले कि वो कोर्ट का बहुत सम्मान करते हैं और उन्होंने इसकी शोभा को भंग नहीं किया है। इस दौरान वकील राजीव धवन ने हिन्दू महासभा के वकील विकास सिंह की ओर से पेश कि गए नक्शे को फाड़ दिया। इसके बाद सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि अगर कोर्ट का डेकोरम नहीं बनाया रखा गया तो हम कोर्ट से चले जाएंगे और माहौल कुछ देर के लिए गर्म हो गया।
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बताते चलें कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ 39 दिनों से राम जनमभूमि-बाबरी मस्जिद के मुकदमे की सुनवाई कर रही है। इससे पहले 18 अक्टूबर को दलीलें खत्म करने की समय सीमा तय की गई थी, लेकिन सीजेआइ ने मंगलवार को संकेत दिए थे कि गुरुवार की बजाय बुधवार को सुनवाई पूरी करने की कोशिश करेंगे। संविधान पीठ के सदस्यों में जज एस ए बोबडे, जज धनन्जय वाई चंद्रचूड़, जज अशोक भूषण और जज एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
संक्षेप में जानें क्या है मामला
गौरतलब है कि साल 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का निर्णय दिया था। जिसमें रामलला विराजमान पक्ष, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को एक-एक तिहाई हिस्सा मिला था, लेकिन कोई भी पक्ष इस फैसले से संतुष्ट नहीं हुआ। सबने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की। दूसरी ओर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। बाद में कई और पक्षों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। जिसपर अब सुनवाई हुई।