आरयू वेब टीम। महज 18 घंटे में मोदी सरकार ने एक अहम फैसला बदल दिया। सरकार ने बुधवार को छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती कर दी थी, लेकिन गुरुवार को सुबह होते ही कटौती को सरकार ने वापस ले लिया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ट्वीट करके इस बात की जानकारी दी। अहम बात यह है कि फैसला वापस लेने की वजह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भूल बताई है। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा है कि यह फैसला भूल से लिया गया था, पुरानी ब्याज दरें बनी रहेंगी।
वित्त मंत्री ने कहा, “भारत सरकार की छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर वही रहेगी जो वित्त वर्ष 2020-2021 की आखिरी तिमाही में थी। यानी मार्च 2021 की ब्याज दर ही आगे भी मिलेगी। जारी किए गए आदेश वापस लिए जाएंगे।” इससे पहले सरकार ने बुधवार को लोक भविष्य निधि (पीपीएफ) और एनएससी (राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र) समेत लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में 1.1 प्रतिशत तक की कटौती की घोषणा की थी।
यह कटौती एक अप्रैल से शुरू 2021-22 की पहली तिमाही के लिये की गयी थी। वित्त मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, पीपीएफ पर ब्याज 0.7 प्रतिशत कम कर 6.4 प्रतिशत जबकि एनएससी पर 0.9 प्रतिशत कम कर 5.9 प्रतिशत कर दी गयी । लेकिन अब यह अधिसूचना वापस ले ली गई है।
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ब्याज में सर्वाधिक 1.1 प्रतिशत की कटौती एक साल की मियादी जमा राशि पर की गयी है। अब इस पर ब्याज 4.4 प्रतिशत होगा जो अबतक 5.5 प्रतिशत था। इसी प्रकार, दो साल के लिये मियादी जमा पर पर ब्याज 0.5 प्रतिशत घटाकर 5 प्रतिशत, तीन साल की अवधि के मियादी जमा पर ब्याज 0.4 प्रतिशत कम किया गया है जबकि पांच साल के लिये मियादी जमा पर ब्याज 0.9 प्रतिशत कम कर 5.8 प्रतिशत कर दिया गया है।
बालिकाओं के लिये बचत योजना सुकन्या समृद्धि योजना खाते पर ब्याज 2021-22 की पहली तिमाही के लिये 0.7 प्रतिशत घटाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया गया है। किसान विकास पत्र पर सालाना ब्याज दर 0.7 प्रतिशत कम कर 6.2 प्रतिशत कर दी गयी है। अबतक इस पर ब्याज 6.9 प्रतिशत थी। वित्त मंत्रालय ने 2016 में ब्याज दर तिमाही आधार पर तय किये जाने की घोषणा करते हुए कहा था कि लघु बचत योजनाओं पर ब्याज सरकारी बांड के प्रतिफल से जुड़ी होंगी।
गौरतलब है कि भले ही इसे सरकार भूल मान रही हो, लेकिन फैसले की टाइमिंग से कई सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि आज पश्चिम बंगाल और असम में दूसरे चरण का मतदान हो रहा है। जहां पर 69 सीटों पर राजनीतिक दलों के भाग्य का फैसला होगा। ऐसे में लगता है कि सरकार को इस फैसले से राजनीतिक रूप से नुकसान का अंदेशा था। और विपक्ष को एक अहम राजनीतिक मुद्दा मिल सकता है।