आरयू वेब टीम। सुप्रीम कोर्ट ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया द मोदी क्वेश्चन’ को बैन करने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली देने वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को नोटिस जारी कर इस मामले में तीन हफ्ते में जवाब मांगा है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की खंडपीठ ने केंद्र को सुनवाई की अगली तारीख पर अपने फैसले से संबंधित ऑरिजिनल रिकॉर्ड पेश करने को कहा है। अगली सुनवाई अप्रैल में होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार एन राम, एडवोकेट प्रशांत भूषण और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा की ओर से दायर याचिका पर कोई भी अंतरिम आदेश देने से साफ इनकार कर दिया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने अगली सुनवाई पहले की जानी की मांग की, लेकिन पीठ ने मना कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह केंद्र सरकार की बात सुने बिना कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं कर सकते हैं। इसलिए उन्हें अगली सुनवाई की तारीख पर सभी रिकॉर्ड पेश करने का आदेश दिया गया है।
दरअसल, अदालत इस मामले में दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। एक अधिवक्ता एमएल शर्मा द्वारा दायर की गई है और दूसरी तृणमूल कॉन्ग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, पत्रकार एन राम और अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दायर की है। एमएल शर्मा ने अपनी याचिका में दावा किया है कि डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाना मनमाना और असंवैधानिक रवैया है। प्रतिबंध हटाने की मांग के अलावा, शर्मा ने दंगों को रोकने में विफल रहने के लिए जिम्मेदार लोगों की जांच की भी मांग की।
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गौरतलब है कि बीबीसी ने ‘इंडिया द मोदी क्वेश्चन’ शीर्षक से दो पार्ट में बनाई गई विवादित डॉक्यूमेंट्री सीरीज में गुजरात दंगों को लेकर नरेंद्र मोदी के कार्यकाल पर सवाल उठाएं। इसको लेकर बीते दिनों केंद्र सरकार ने ट्विटर और यूट्यूब से डॉक्यूमेंट्री से संबंधित लिंक हटाने का आदेश जारी किया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूट्यूब वीडियो के लिंक वाले 50 से ज्यादा ट्वीट्स को ब्लॉक किया गया था। विदेश मंत्रालय ने इसे भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने की कोशिश करार दिया था।