आरयू वेब टीम। केजरीवाल सरकार और दिल्ली के एलजी के बीच चल रहा विवाद देश की सबसे बड़ी दालत में है। पांच जजों के संविधान पीठ दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर अधिकार किसका? इस सवाल का जवाब जानने में जुटी है। सुनवाई के दौरान आज केंद्र सरकार ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा धरना-प्रदर्शन का हवाला दिया। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जब अदालत में सुनवाई चल रही है, तब इस तरह के विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। ये धरना और नाटक नहीं होना चाहिए, हालांकि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इसमें नहीं जाएंगे। सिर्फ संवैधानिक मुद्दों पर सुनवाई करेंगे।
वहीं सीजेआइ डी वाई चंद्रचूड़ ने केंद्र पर सवाल उठाया, उन्होंने कहा, “इस दलील को मंजूर करना मुश्किल है कि संघवाद केवल राज्यों और केंद्र पर लागू होता है। यहां हाइब्रिड संघवाद भी हो सकता है। केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्र के बीच संघवाद की अलग डिग्री हो सकती है। हो सकता है कि इसमें संघवाद के सभी लक्षण न हों, लेकिन कुछ हो सकते हैं, इसलिए एक केंद्रशासित प्रदेश के साथ मिश्रित संघवाद हो सकता है। हालांकि, ये एक पूर्ण राज्य के रूप में नहीं हो सकता, लेकिन एक राज्य की तरह कुछ साजो-सामान हो सकता है। आपको यह भी जवाब देना होगा कि देश में सेवाओं पर कार्यकारी नियंत्रण को मान्यता देने से दिल्ली राजधानी होने से कैसे हट जाएगी?”
दरअसल तुषार मेहता ने उपराज्यपाल के खिलाफ दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा द्वारा सोमवार को किए गए प्रदर्शन का हवाला दिया। तुषार मेहता ने कहा, “केंद्र शासित प्रदेशों को संघ के नियंत्रण में रखा जाता है, क्योंकि प्रत्येक केंद्र शासित प्रदेश के अलग-अलग सामरिक महत्व के कारण यह रक्षा या ऐसे अन्य महत्व हैं। दिल्ली का देश की राजधानी होने का अपना अलग महत्व है।
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इसलिए, संविधान ने दिल्ली को इतने बड़े देश की राजधानी होने के लिए एक सामान्य स्थान दिया है और बहुत सचेत रूप से अपनी शक्तियों को केवल उन प्रविष्टियों तक सीमित कर दिया है जो केंद्र शासित प्रदेश पर लागू हो सकती हैं। देश के भीतर शासन की इकाइयों के बीच स्पष्ट सीमांकन और एक निर्विवाद स्थिति को ध्यान में रखते हुए कि दिल्ली “केंद्र शासित प्रदेश” है। यहां शासन की एक पूरी तरह से अलग इकाई है, जो केंद्र और राज्य से अलग है।”