शहर तो दूर अपने कार्यालय का सुनियोजित विकास करना नहीं जानता एलडीए, तस्‍वीरों में देखिए हकीकत

सुनियोजित विकास
ना..ना.. इसे नगर निगम का कूड़ाघर नहीं समझना यह तो एलडीए के हेड ऑफिस की सीढि़यां है भाई।

आरयू एक्‍सक्‍लूसिव, 

लखनऊ। जिनके ऊपर शहर के सुनियोजित विकास का जिम्‍मा हैं, वही लखनऊ डेवलेमेंट ऑथरिटी,(एलडीए) अपने हेड ऑफिस तक को सही ढंग से मेंन्‍टेन रखना नहीं जानता। कार्यालय में गंदगी के साथ ही लापरवाही और इंजीनियरों के नौसीखिएपन के ऐसे नमूने-नमूने भरे पड़े हैं कि देखकर आप अपना माथा पीट लेंगे।

गोमतीनगर के विपिन खण्‍ड स्थित कार्यालय पहुंचने वाले लोग अक्‍सर चर्चा करते हुए आपको मिल जाएंगे कि यहां बैठे अधिकारियों और कर्मचारियों को अपने कार्यलय को सुधारने की जब फुर्सत और तमीज नहीं हैं तो इन लोगों से शहर के सुनियोजित विकास की उम्‍मीद करना ही बेमानी है। सबसे ज्‍यादा दिक्‍कत एलडीए की पुरानी बिल्डिंग में है। सामने हैं कुछ तस्‍वीरें जो बयान कर रही एलडीए के जिम्‍मेदारों की योग्‍यता, गंभीरता और ईमानदारी।

1- धूल गर्दें और जाले से रंगी ढकी ये मेज-कुर्सियां कही छिपाकर नहीं रखी गई। इसका दर्शन आपको पुरानी बिल्डिंग के मेन गेट से घुसने पर बाईं ओर देखते ही हो जाएगा। यह जिस केबिन की शोभा बढ़ा रही हैं उसे इंजीनियर संघ का कार्यालय कहा जाता है। केबिन के बाहर महीनों से ताले के साथ ही अभियंताओं का नाम और पद भी लटक रहा है।

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2- बाथरूम की गंदगी के बीच एक्वॉगार्ड के शुद्ध और ठंडे पानी का इंतेजाम तो किसी योग्य व्यक्ति ने ही किया होगा। अब वही आपको बता पाएगा की इसे पिएगा कौन। यह स्पेशल व्य्वस्था एलडीए सचिव व अपर सचिव के पुराने कार्यालय से चार कदम की दूरी पर लेडीज बाथरूम में की गई है।

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3- आग लगी तो काम नहीं आएंगे एलडीए पीआरओ कार्यालय के बाहर लगे यह अग्निशमन यंत्र, क्‍योंकि इनकी री-चेकिंग डेट तो बीत चुकी हैं साल भर पहले। यकीन न हो तो खुद पढ़ लीजिए। एलडीए की सर्तकता का यह आलम तब हैं, जब इस साल राजधानी के करीब दर्जन भर सरकारी ऑफिस में आग से अरबों रूपए का नुकसान हो चुका है।

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4- यह हैं एलडीए की गुमनाम लिफ्टें। न लिफ्ट नम्‍बर का पता और न ही फ्लोर नम्‍बर का। जानकारी के लिए आपको इंतेजार के बाद लिफ्ट में घुसना ही पड़ेगा। हालांकि एलडीए के नए वीसी डॉ. अनूप यादव के आने के बाद नवीन भवन की लिफ्टों में यह कमी दूर की गई है।

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5,6,7- यह तस्‍वीरें खुद बता रही हैं कि वॉशरूम की आवश्‍यकता पड़ने पर आपको किस तरह की दिक्‍कत का सामना करना पड़ेगा। एलडीए कार्यालय की इस दयानीय स्थिति को देखने के बाद आपको एक बार फिर पुरानी कहावत, “चिराग तले अंधेरा” जरूर याद आ जाएगी।

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इंजीनियर ने कब्‍जा कर लिया नई बिल्डिंग का वॉशरूम

सुनकर आपको आश्‍चर्य हो सकता है, लेकिन बात सही है। करोड़ों रूपए की लागत से तैयार की गई एलडीए की नई बिल्डिंग की हालत भी कुछ ठीक नहीं हैं। इसके कई फ्लोर के वॉशरूम पर ताला बंद रहता है। जबकि कई में लगातार पानी बहता रहता है।

एक वॉशरूम पर ताले के बारे में पूछने पर सिक्‍योरिटी मैन आरएस मेहरा ने सहायक अभियंता वीके ओझा से बात कराई। एई की ओर से जो जवाब आया उसे सुनकर सिर घूम गया। उनका कहना था कि वॉशरूम की चाभी जेई नवीन शर्मा के पास रहती है। हालांकि वह इसका जवाब नहीं दे सके कि किसी को वॉशरूम की जरूरत हो तो वह वॉशरूम कब्‍जाने वाले जेई साहब से कहा मिले। इस बारे में जानकारी के लिए जब जेई के सीयूजी नम्‍बर 9918666678 पर कॉल की गई तो वह स्‍वीच ऑफ मिला।

साथ ही भवन केे आठवें फ्लोर पर लगे शीशें के पर्दें भी काफी समय से गायब है। चीफ इंजीनियर कार्यालय के बगल में धूप से बचने के लिए लोग शीशे पर कागज चिपकाकर काम चला रहे है। दूसरी ओर पुराने भवन का आपस मे कनेक्‍शन भी सुनियोजित ढंग से नहीं किया गया है। जिसके चलते यह आपको भूल भुलैय्या वाला अहसास भी कराएगा।

एलडीए कार्यालय का यह हाल तब हैं जब एलडीए मेन्‍टेनेंस के नाम पर लंबी फौज रखने के साथ ही सालाना करोड़ों रूपए खर्च कर रहा हैं। जानकार सूत्र बताते हैं कि कार्यालय के रख-रखाव से ज्‍यादा इंजीनियर कुर्सी बचाने के लिए अपने अधिकारियों के भवनों को संवारने में दिल, दिमाग लगाते है।

नवीन भवन को ठीक कराया जा रहा है। यहां का काम पूरा हो जाने के बाद दूसरी बिल्डिंग को भी प्रॉपर ढंग से मेन्‍टेन कराने के साथ ही जिम्‍मेदारी तय की जाएगी।   डॉ. अनूप यादव, एलडीए उपाध्‍यक्ष