आरयू वेब टीम। लखीमपुर हिंसा में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए यूपी सरकार की ओर से पेश की गई स्टेटस रिपोर्ट पर एक बार फिर से नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा है कि हमने दस दिन का समय दिया था। इसके बाद भी स्टेटस रिपोर्ट में कुछ भी नही हैं। सिवाय इतना कहने के कि गवाहों से पूछताछ की गई है।
साथ ही कोर्ट ने कहा कि हिंसा के मामले में 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन सिर्फ आशीष मिश्रा का ही फोन जब्त किया गया है। इस पर योगी सरकार के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि अन्य आरोपितों ने बताया कि वह फोन नहीं रखते हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि आपने स्टेटस रिपोर्ट में यह कहां लिखा है?
इस दौरान कोर्ट ने लैब रिपोर्ट भी पेश नहीं करने पर नाराजगी जताते हुए योगी सरकार से सवाल किया। इस पर सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि लैब की रिपोर्ट 15 नंवबर को आएगी, जिसके बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई शुक्रवार को करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा है कि प्रदेश सरकार शुक्रवार तक अपना रुख साफ करे।
वहीं न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने मामलों में आरोप पत्र दाखिल होने तक जांच की निगरानी के लिए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों, न्यायमूर्ति राकेश कुमार जैन या रंजीत सिंह के नामों का सुझाव दिया। पीठ ने कहा कि जांच “उस तरह से नहीं हो रही है जैसी हमें उम्मीद थी”। इसने वीडियो साक्ष्य के संबंध में फोरेंसिक रिपोर्ट प्राप्त करने में देरी पर भी ध्यान दिया।
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इससे पहले, पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को गवाह संरक्षण योजना, 2018 के तहत गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष अन्य गवाहों के बयान दर्ज करने और विशेषज्ञों द्वारा डिजिटल साक्ष्य की परीक्षा में तेजी लाने का निर्देश दिया था।
बता दें कि लखीमपुर खीरी में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे एक समूह ने तीन अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की यात्रा के खिलाफ प्रदर्शन किया उस दौरान एक एसयूवी द्वारा चार किसानों को कुचल दिया गया। गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने भाजपा के दो कार्यकर्ताओं और एक ड्राइवर की कथित तौर पर पीट-पीट कर हत्या कर दी, जबकि हिंसा में एक स्थानीय पत्रकार की भी मौत हो गई।