आरयू ब्यूरो, लखनऊ। गुंडा एक्ट के तहत पारित एक आदेश को निरस्त करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा है कि एक मामले से कोई आदतन अपराधी नहीं माना जा सकता जब तक अपराधों की पुनरावृत्ति ना हो रही है।
वहीं कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील पवन कुमार मिश्रा ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एक अकेला आपराधिक मामला है, जिसमे याचिकाकर्ता बेल पर है, इसलिए उसे आदतन अपराधी नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि याचिकाकर्ता न तो गैंग लीडर है और न ही किसी गैंग का सदस्य है।
लखनऊ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस करुणेश सिंह पवार ने 1970 के अधिनियम की धारा 2(बी) और धारा तीन के तहत “गुंडा” की परिभाषा और विजय नारायण सिंह बनाम बिहार राज्य और अन्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर विचार किया और कहा कि किसी को तब तक आदतन अपराधी नहीं माना जा सकता जब तक कि अपराधों की पुनरावृत्ति न हो।
यह भी पढ़ें- आधी रात घर पर पुलिस की छापेमारी के बाद बोले मुनव्वर राना, दूसरा बिकरू कांड करने की तैयारी, जंगल में मिलेगी हमारी लाश
चूंकि नोटिस में केवल एक छिटपुट घटना का संदर्भ है, याचिकाकर्ता को केवल उस एक घटना के आधार पर आदतन अपराधी नहीं माना जा सकता है और इसलिए नोटिस कानूनी आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहता है। उक्त के आलोक में न्यायालय ने आयुक्त एवं जिलाधिकारी द्वारा पारित आदेश को निरस्त कर दिया।
बता दें कि यूपी गुंडा नियंत्रण अधिनियम, 1970 की धारा 6(1) के तहत आयुक्त देवी पाटन मंडल, गोंडा द्वारा पारित आदेश दिनांक 11.2.2021 और जिलाधिकारी द्वारा पारित आदेश दिनांक 3.12.2020 के खिलाफ एक याचिका दायर की गयी थी, जिसके द्वारा याची को जिला बदर कर दिया गया था।